मिताक्षरा सटीक | Mitakshara Satik
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
836
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिताक्षरा स० प्रायश्चत्तकांड का प्रथम सचीषय ॥
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० मंगलाचरण---यथस्यास्य प्रयोजनंच १ ( इति अध्यात्मप्रकरण विदेश ) |
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९ | मृतबाल वृद्वादीनां दाहादिकर्म विवेक|| ९ १० न् सर्वेप्ा श्विकः ए्
प्रथम: परिच्छे दः २ (न _ सर विए
मर चन्मप्रस्णयेःसतकभेदाइचइण भेदातु ३ शयश्चितएसाभाविनग्कनामलक्षणानि १० | ९
द्वितीय: परिच्छेदः ३३ | ९ [इतिनएक्लादिगति विपयिक॑तिपरिच्छेद )
३ (पद्यःगशैचानांव्यवस्यामेदा;वृतीय;परिच्छो द्र: ( मय प्रकरण समाप्न ) हु
(४ | हलक बिनापि अशुचिष्पर्ण देपभेदा; | २० | ९ [२४ | पंचमहापातक्ानांनाम लक्षणनिर्णय;. « रि६४|२
४३ शुद्दिसम्पादनहेतु सामान्यानां स्वरृपसख्या| 7९ | ९ अतिपातक पातकादोनां लक्षण भेदा। २०४२
भेदा; | उपपरातकादीना स्वपापानां लत्तयभेदा; [९००१९
(इत्याशिचप्रकरणं पंचपरिच्छे दमयंसमाए) | ८६ 18 | इतिमहापातकादि सर्वनिमित्ताना )
६ | ग्राएल्कालिकजी विकादि वृत्यंतर घममेदा, *३ [ प्रकरयंत्रि परिच्छेद मयंसमाप्र ) २६०
७ | वानः्याश्रम .घ्ममेटा: &३ ११६० | ब्रह्महत्याया: प्रायश्चित्त भेदा; ६ 0॥५
(इतिप्रकरय द्विपरिच्छेदमयसमाप्) १९ १० ६ अम्माप्रेपि द्वादशर्वप क्षचित्कर्म सिद्ध
आपत्वुमंस हतं करणानि [३०६२०
संन््यास्गहणे परिन्नाजकस्वहूप लक्तयमेदा/१४८ / उत्तप्रायश्चित्तस्य विध्यन्तणनुकल्प भेदा; ।३९११४
& | सन्यासि हृदिज्ञानेत्पप्तिप्रकारनियमा। १९० |१३६० | अन्यचापि ब्रह्मनघ प्रायश्वित्तस्यातिदेश; रिरेष| ९
4० | पप्सात्मन; सृट्टियहण प्रकार; १९३ | ४ ( इत्ति ब्रह्महत्याप्रकरण चतुःपरिच्छेद )
११ गर्भस्थस्य शारी रक्र व्यवम्थाचान (६४३ २४ ( मय समाए ) ३8६
१२ ब्रह्मोपांसनापा: प्रकार भेदाः 1६० | ९ ६१| मुणपाने सकामकृतपाप़े प्रायश्वित भेदा; [३ ४| २
९३ | इश्वस्स्य विश्यद्धपिताया निद्गए्ण १८० [९४ अक्ामत:मु एमद्यादीवाप्रायश्चिम्रमेदा: ३४०१ 9
१४| पपाज्नाया जगदुत्यत्ें: प्रपंध विस्ताय: ११ | ३ मुस्त्तर मद्यज्ञाताना प्रायश्चित्त भेदा: वि४६| ३
49 | क्रमंबोज्ञाना थिपाक प्रपंच वियेक: ः रञ ( इतिमुएपान प्रायश्चित्त प्रकरण |
१६ | बोजवापादिकर्मानन्तर सबव्यापित्वप्रकारा ६०९ | & ( समापन विपरिच्छे दमय ) 8५4
१०) मेचपदत्व॑ देवादिये।नित्व' बागच्छतीत्या २०४ ११ ३४; मुचर्थापहदार प्राय श्चतमेदा: २७९ ९६
दि विवेक: | (५ | अचानात्मु वर्यापहारे प्रायश्वित ३४६
4८ | ईश्सस्थ्य सर्वगतस्थ प्रत्यक्ष लचपानिचाइ९०३ [१९ | [ इतिसुयण॑स्तेय प्रायश्वित प्रकगएं )
१६ | तत्वानामुत्पत्तिक्रम: स्वादिमार्ग घिरेक सि० | ( स्माग्न द्विपरिच्य दमयं ) दि
श्वास्मिनु २२३ | २ |३६| घनन्वादि गुरुदाणमन प्रायश्चिलमेदा: (1६४
२० | अधिमायट्ट विभ्रूति प्रापक येगाम्याओे (इतिएुरुतत्पाकाणं परिच्ये देजमयंसमाए' पि
मे।तसाथन १३३ ९१ ३०) संम्रगिना प्रायश्वितमेदा।. * च्श् हि
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