बृहत्संहिता | Brihtsahita

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Brihtsahita by डॉ. दुर्गा प्रसाद - Dr. Durga Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[श्र २| सावत्सरसत्र । ११ नेदा आदि तिथि सर्यआदिवार ववआदि करण अशिवनी आदि नक्षत्र शिव- भाद ताससहत इनसच ক জাল झा याग देहफरकने का फल स्दप्र क जभाशभफल विजयके देनेवाले स्नानका विधान यहयज्ञ गणयाग अथोत गद्यरकूपजन हवनके समय शभाशुभ सचक अग्नि के चिहन हाथी সী হী की चेएा सेनाके मनप्यों का प्रवाद अवोत परस्पर बातचीत करना चेशा ग्रधात्त सैनिकोंका उत्साह ओ अनत्साह थहों के वलावल से संधि নিস यान आसन देव आश्रय इन छःगर्णों की तथासास दास भेद दंड इनचार उपायोकी सिद्धि असिद्धि का विचार यात्रा के सलय शुभाशुभ सूचक शकुन सेना के उत्तरने के लिये शुभ अग॒भ भूमिका कहना यात्राके समय गुभाशुभ सचक हवनागिनि के रंग मंत्री चर अयात गप्त परूप ढत आओ आटावंक अथात्‌ बनसें रहनेबाले भीलगआदि इनके यथाकाल धर्थात्‌ अपने २ समय पर प्रयोग अथीत कार्य में नियक्त करना ओरौ रान्चके दुर्म यथात्‌ गद्रकरे लेनेका उपायये सच वातें कही हँ १८ ॥ (उक्तंचाचार्यः ) जगतिंप्रसार्तामेवालखितामंबसतानापक्तामवह्दय ।| शार्यस्यसभगणनाद शानप्प्तत्ञास्तस्थय १६९ | झाचायाने कहाभीहे कि जिस देवज्ञका गार्य गांणेतस्कन्ध के सहित सम्पू- টা রমন मानः पतार दियाहों वद्धिमं मानों लिखिदियाहां हृदयस माना धर दिया होय उराका कथन निष्फल नहीं होता। भवात्‌ নিহকল্ন ভান उशास्य जाननेवालेकी वाणी मानियाॉकी वाणाका भात सत्यहाताह १६ ॥ साहतापारमरनचददाचन्त्ामवात २० ॥ संहिताका पारगामी अर्थात्‌ संदिताके पदाधाका भली भाति जाननवाल्ा दैव चिन्तक भर्यात्‌ पूव जन्मत शूमाश्चुभ कमक फलका जानन हरा हाताद २०॥ यत्नेतिसंहितापदार्था/दिनकरादीनांग्रहाणाचारास्तेपांचभक्नतिवि कऊतिप्रमाण व्शकिरणयतिसंस्थानास्तमयीदयमागसागान्तरव बक्श्षेसमागमचारादि भिःफलानि । नक्षत्रकृमविमागेनदेशेपूच्ग स््यचार:सप्तापचार:ग्रह् भक्तयान নলহ্দহসগ্হাতনসহখুডসহত मागमग्रहवषफलगर्भलक्षणरोहिणीस्वात्याषाढीयीगाः सद्योचपकुसु मलतापरिधिपरिवेषपरिधपवनोलल्‍कादेग्दाहाक्षतेचलनसन्ध्याराग गन्धवेनगररजोनिधोताथकाणडसस्यज मसन्द्रध्वजन्द्र चापवास्तदि




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