भूख की ज्वाला | Bhookh Ki Jwala

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Bukh Ki Jawala by डॉ. दुर्गा प्रसाद - Dr. Durga Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ९१७ ] यज्ञाद्भवति -पजन्यः : ~“: , ^: हा ১:77 অন্ধ: - ऋमसमुद्धव:. | | ' ` प पर इस सिद्धान्त पर इख वीसवीं सदी मे वहत ही कम लोगों की आस्था होगी। कारण, .वें कहेंगे, जब तक देश सम्रद्ध नहीं होता, यज्ञ की कल्पना केवल मनसोदक है। तथापि, गीता का यह वांक़्य तो त्रिकाल-सत्य है. ही, इसमें कोई. सन्देह नहीं, भले ही भूखे भारतीय भगवद्राक्य क्रा भाव भूल जाय! किन्तु इस पुस्तक में केवल (भृख की ,ज्वाला'-पेटं की श्राग-जटरा्चि--क्रा दी-चिच्र .श्रकित नहीं हः; उस भूख की ज्वाला का भी चिंत्र ठंडी विशदता एवं ` विचक्षणएता सं अंकित है, जो मनुष्यमांत्र के-बल्कि' प्राणिसात्र के--हृदय में धर्धक रही है। पात्रांलुसारउसके रूप में भिन्‍नता अवश्य है। रावरं और दुर्योधन के हदय मे भी यह्‌ धधकी थी, सिकन्द्र ओर नेपोलियन हदयं मे ची 1 आज उसी मे हिटलर, संसोलिनी, जापान, सच सवाहा हो रहै हे । च संख्य सम्राट श्रौर विजेता,महत्त्वाकाक्षी नौर रभुताशाली उसमे भरमीभूत हषं है, हो रद होगे च्नौरदोते रहेगे । অহ ईश्वर का चेक्र अनादि काल से चल रहा है और अनन्तकाल तक. चलता रहेगा। साम्राउ्यलिप्सा का शमनसाम्राज्य-विस्तारं से नदीं दयोता-प्रमुतव-प्राप्नि की वृष्णां सदा तरुणी वनी रहती है । मनुष्य की वांसंनाओं की यही दशा है. | वांसनाएँ भी मन की भूंख ही हैं। वासनाओओं की ज्वाला उंद्रंज्वांला से भी भयंकर




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