तत्त्वार्थसूत्रम् भाग - 1 | Tattwarthasutram Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
70 MB
कुल पष्ठ :
1032
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वीपिकानियुक्तिश्य अ- १ नवतत्वनिरूपणम्.-९
- ८, » यद्वान्८-आत्मनः ,उप-समीपे योजनमुपयोगः, सामान्येन ज्ञानं-दशनज्च | तथा च---उभय
निमित्तवशादुप्रपधमानशैतन्या5नुविधायी, परिणाम! उपयोग.इति फल्तिस् | एवंविध उपयोगो रक्षणं
यस्य स उपयोगलक्षणो जीवः स उपयोगो हिविधः ज्ञानोपयोगः दरशनोपयोगश्व ।
5॥०» तत्र-वस्तुनो विशेषपरिज्ञानं ज्ञानमुच्यते, विशेष, विहाय सामान्यावर्वोकनमात्र दर्शनमुच्यते ।
तत्र-ज्ञानोपयोगो5ष्टविध:. मतिज्ञान-अश्रुतज्ञाना-5वधिज्ञान-मनःपर्ययज्ञान-केवरज्ञान-मत्यज्ञान-
श्रुताज्ञान-विभक्जज्ञानभेदात् ।
दरशनोपयोगश्चतुविधः--चक्षुदेशना-5चक्लु दे शना-5वधिदशीन-केवलदरशन भेदा त् ।
+ 'अंद्या-उपयोगकक्षणः ' उपयोगो विवक्षितार्थनिश्वयरूपार्थपरिच्छेदः, स्वरूपव्यांपारलक्षणम्--
अंसोधारंणरंचरूप॑ ' यस्य स' उपयोग॑छक्षणः प्रस्तुतार्थनिर्धारणब्यापारपरिणामो जीवों भावजीव
इईव्युच्यते | तथा च जौवस्तावद् हिविधः भावजीवो द्रव्यजीवश्व । तत्र-औपशमिक- क्षायिक-क्षायो-
पंशमिक-ओऔदयिक पारिणामिकमाव्युक्तो भावजीवः उपयोगछक्षणो व्यपदिश्यते।
। « * द्व्यजीवस्तु-“-गुणपर्यायवियुक्त:' प्रज्ञा्यवस्थापितोडनादिपारिणामिकभावयुक्त उच्यते |
करने के रिए कहते हैं-- जीव उपयोग कक्षण वाला है ।
_ वस्तु के स्वरूप को जानने के लिए वस्तु के प्रति जो उपयुक्त अर्थात् प्रेरित किया
जाय वह उपयोग कहा जाता है | -इसका फल्ितार्थ यह हैं कि अन्तरंग और बहिरंग कारणो
से उत्पन्न होने वाह चैतन्य रूप परिणाम उपयोग है। इस प्रकार का उपयोग़ जिसका रक्षण
है वह जीव है
“| उपयोग के दो भेद हैः--ज्ञानोपयोग और दरशेैनोपयोग। सामान्य विशेष धर्मात्मक वस्तु
के विशेष धम को जानने वाला ज्ञानोपयोग और सामान्य धर्म को विषय करने वाढा दशेनोपयोग
कंहलाता है। ज्ञानोपयोंग आठ प्रकार का है-१. मतिज्ञान २. श्रुतज्ञान ३. अवधिज्ञान 9
मनः पर्ययज्ञान ५. केवरज्ञान ६. मत्यज्ञान ७. श्रुत-अज्ञान और ८. विभंगज्ञान । दशनोपयोग
चार प्रकारं का है-चक्षुदशन, -अचक्षुददीन, अवधिदशन और केवलदर्णन ।
' अथवा --जीव उपयोग छक्षण वा है, यहाँ उपयोग का तापर्य है-किसी पदार्थ को
निश्चय रूप से जानना | यह उपयोग जिसका असाधारण ग्रुण है, वह जीव भावजीव कह-
छाता है । जीव के दो भेद है--भावजीव और द्ृब्यजीव | ओपशमिक, क्षायिक, क्षायोपश-
मिक, औदयिक और पारिणामिक भाव से युक्त जो भावजीव है, वह उपयोग रक्षण वाला
कहलाता
' जो गुण और पर्याव से रहित हो, बुद्धि द्वारा कल्पित और अनादि पारिणामिक भाव
से युक्त हो, वह द्वव्यजीव है |
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