अथ उत्तरा | Ath Uttara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
62 MB
कुल पष्ठ :
1390
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४) भूमिका ।
न् हवगैव, गौतम, सांख्य, मैत्रेय, च्यवन, जमदृक्नि, गे, कार्य),
कश्यप, नारद, मार्केण्डेय कपिश्नल, वामदिव, कोणिडिन्य, शाण्डिल्य, शाकुनिय,
शौनक, आश्वलायन, सांकृत्य, विश्वामित्र, परीक्षक, देवढ, गाढ़व, वीग्य,
काम्य, कात्यायन, कांकायन, बैजवाप, कुशिक, वादरायण, दिरप्याक्ष,
लौगाक्षी, शरढोमा, गोमिल वैज्ञानस; और वाढखिल्यादिक अनेक महपि-
लोगथे, वह अह्मकऋषि, अहयज्ञानी, यमनियमके समुद और होमाभिके समान
प्रकाशमान, तपस्तेज)पुंजः आनन्दपूर्वक सब सुनिपुंगव यह चचा कर रहेथे
कि मनुष्यका धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इस चतत॒र्वंगके साथनका मूह यह
शरीरहे, यदि यह शरीर अच्छाहै तो यह चतुर्वर्ग साथसक्ताहै ओर जो यह
| शरीरही रोगग्रीसित रहे तो कदापि नहीं साधसक्ता ।
रोगा.काश्यैकरावलक्षयकरादेहस्यचेष्ठाहराः । '
दृश्यादीन्द्रियशक्तिसंक्षयकराःसर्वाड्पीडाकराः ॥ __
धर्माथांखिलकाममुक्तिषुमह[विश्वस्वहुपावल्तू ।
प्राणानाशुहरन्तिसन्तियदितेसीस्यंकुतःआणिनाम ॥
तत्तेषांप्रशमायकश्नविधिचिन्त्योमवद्निईधेः ।
योग्येरित्यमिधायसंसदिभरद्वाज॑मुनिते+शुवन् ॥
अर्थ-रोग मनुष्योंके देहको दुर्वेछ कररेंदे, बलका क्षय करतेहें, शगैरकी
चेशको विनाश करते हैं, नेत्रादिक इन्द्रियोंकी श॒क्तिको हरण करतेहें, सब
अंगोमें पीडाकों उत्पन्न करते हैं, धर्म, अर्थ, अखिल काम; और मोक्षके,
लिये हो महाविप्नकार्ी हैं; अधिक बढनेपर बलात्कार शीघ्रही प्राणेंको
हरलेतेहे, जब इसप्रकारके रोग शरीरमें सदा विद्यमान हैं तो फिर प्राणियेकि
प्राणोंकी छुशठ कटा! इसकारण तुम सब रोगोंके प्रयलमें तत्पर ओर
पूर्ण विद्वान एकत्रित हुए हो तो रं)गोंके दूर करनेका कोई उपाय विचारों ।
इसप्रकार भारद्ाजके दचनोंको सुनकर संब ऋष अत्यन्त इर्षित होकर
उम्चखरसे जयजय शब्धकर, ताल्ध्वन करने ढगे झोर भारद्राजजासे
बोले कि, है भगवान् | आपही इस काय करनेंके योग्यहैं, [सकारण तुम
परिश्रम करके इन्द्रके पास जाकर आर्थना करे, और विधिपूर्वक
आदुर्वेदका पढो, जिससे :जाके ढोग रोग'हितहों, भयसे छूटें इसप्रकार
डब सब ुन्योंने विन्यर्क्त: आर्थना की, तब उनकी आज्ञानुसार मुनि-
$ड्व भारद्वाज इन्द्रढोककों गये, इन्द्रको आश्टीर्वाद दे स्तुति करी, और
हे
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