सध्दर्म मण्डनम् | Saddharm Mandanm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ २ ] अर्थात जगतके सम्पूण जीवोंकी रक्षा रूप दयाके लिये भगवानने प्रवचन कश है। इस मूछपाउमें जीवगक्षा रूप धर्मके छहिये जेनागमकी रचना होना बतहायी ' गई है। अत; जीवरक्ष। रूप धर्म जोन धर्मका प्रधान अज्ज दै। उस जीवरक्षाको जो धमे मानता है और विधिवत्‌ उसका पाछन करता दै वही तीर्थड्वुरकी आज्ञाका आराघक पुरुष दे। इसके विपगीत जो जीवरक्षाकों धर्म नहीं मानता किन्तु इसको पाप जथवा अधम बताता है बह धर्मा द्रोही औ! चीवगगकी जाज्ञाका तिरस्कार करने वाला दै। केवल जैनधम ही जीवरक्षाको प्रधान धमे नहीं बतछाता किन्तु दूसरे मतवाले शास्त्र भी इसे सर्वोत्तम भोर सर्वप्रधान घमम मानते हैं। मह।भारत शान्तिपवे्में छिखा है कि--“प्राणिनां रक्षणं युक्त सत्युभीतादि जन्तवः जात्मोपस्पेन जानद्धिरिष्टं स्वेस्य ज्ीवितम” ॒ /दीयते मार्य्यमाणस्य कोर्टि जीवितमेव वा। धनकोर्टि, परित्यज्य जीतो जीवितु मिच्छति”। ' । जीवानां रक्षणं श्रेष्ठ ज्ञीवाः जीवित कांक्षिण: तस्मात्समस्तदानेभ्योइभयद्‌।न॑ प्रशस्यते एकत: का्यनो मेरुवेहुसल्ला बहुल्धरा , एकतो भय भीतस्य प्राणिन: प्राणरक्षणमू”र | अर्थात, जेसे अपना जीवन इष्ट है उसी तरह सभी प्राणियोंका अपना अपना जीवन इृष्ट हे, सभी जीव मरनेते डरते हैं इसलिये संभीको झपने समान जान कर उनकी प्राणरक्षा करनी घाहिये। ह मारे जाने वाले पुरुषफों एक तरफ फरोड़ों धन दिया जाय मोर दूसरी मोर उसका जीवन दिया ज्ञाय तो वह धन छोड़ कर जीवनकी ही इच्छा करता है। जीव रक्षा करना सबसे प्रधान घम है । सभी जोव जीवित गहना चाहते हैं। इपटिये सभी द नोमें मभयदान यानो जीवरक्षा कप्ना श्रेष्ठ है। एक तरक सोनेका परत मेरु और बहु'ल्ा प्रथिवी रख दी जाये और दूसरे तरफ स॒त्युभीत पुरुषका प्राणसक्षण रूप धमें रख दियाजाय तो प्राणरक्षा रूप- धर्म ही श्रेष्ठ सिद्ध दागा। न्‍ है है इसी प्रकार विष्णु पुगणमें भी छिखा। है... /कपिछानां सहस्नाणि योदविजेश्य: प्रयच्छति पकस्य जीवित दुद्याल्नच तुल्य॑ युधिष्ठिर”




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