ब्रह्म पुराण प्रथम खण्ड | Brahm Puran Pratham Khand
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
504
श्रेणी :
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जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भूमिका:
५
यो विद्याच्चतुरों वेदान् साझ्भोपनिपदो द्विज:॥
न चेत्पुराणं सम् विद्यान्नव स स्याद्विचक्षण: ॥
“अरद्य पुराण” का यह कथन पुराणों के प्रति प्राचोन कात़ के
विद्वानों की भावना का दिग्दर्शन कराता है | इस लेखक के मतानुसार
यद्यपि विद भारतीय धर्म के मुसाघार हैं, पर केवल उन्हीं के पठन-पाठन
से मनुष्य धर्म के सम्पूर्ण स्वरूप को जानकारी प्राप्त नहीं कर सकता।
इंसीलिये वह कहता है कि “मनुष्य चाहे चारों वेदों का उपनिषदों सहित
अध्ययन कर ले, परें पदि प्रंराणों की जानकारी नहीं है, तो उसे
धवद्वाम्! नहीं कहाँ जायगा 1/हम जानते हैं कि हिन्दन्समाज के ही
अनेक स्यक्ति ओर एकाघ नवीन सम्प्रदाय घाले इस कथन से असन्तुष्ट
होंगे कि पुराणों की तुलना वेदों से की जो रही है, पर हमारी सम्मति
में जो कुछ ब्रह्माण्ड पुराणकार” ने कहा है यह ठीक ही है। यह सत्य है
कि येदों का महत्त्व बहुत अधिक है भौर छध्यात्म-विद्या की दृष्टि से
उपनिपद् उनसे भी आगे बढ़े हुये हैं; पर यह समस्त एकांगी है।
भारतीय मनीधियों मे धामिक ज्ञान के सोन विभाग किये हैं, आध्यात्मिक,
आधिदंविक और आधप्रिमीतिक । बेद और उपनिषदो को आध्यात्मिक
ज्ञान का स्रोत माना गया है, पर शेष दो:विभायों का वर्गत विस्तार के
साय पराणों में ही पाया जाता है |
जो व्यक्ति भारतवेपं के धाघीनें शनि-विज्ञांन का ष्योपके परिचेय
भीर व्योवद्ारिक स्थरूप जानना चोहेतां है उसको पुराणों का अध्ययन
करना अनिवायं है। यद्यपि पुराणों में प्राघीनें काले के महापुरुषों
राजवंधों और प्रसिद्ध धांतरफों को वेंगेंन फथा के रूप में ही किया गया
है तो भी उनसे विभिन्त कारों को राजनेंतिक 'हैयों सामाजिक स्थिति
का कुछ धामादं तो .प्राप्त होता ही है । हस्त प्रकार के धर्णनों का पीर
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