महाभारत का मर्म | Mahabharat Ka Marma

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Book Image : महाभारत का मर्म - Mahabharat Ka Marma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युधिछिर, परीक्षित और जनमेजय इन पाँच पीढ़ियो के साक्षी थे। अपने पुत्रों, पौत्री. प्रपीत्रो, पुत्रवधुओ. पौत्रवधुओं सब के कलह, भेद, ईर्पा, अभिमान, अवज्ञा या अजान से पैठा किए गए दुखार्णव या महाप्रलय को उन्होंने स्वयं देखा था। दूसरों के मुँह से सुनकर उन्होंने कभी कुछ नहीं कह्ा। द्रौपदी चीरहरण जैसे कई प्रसगों का वर्णन जब पढ़ते है तो मानो कोई आँखो देखा वर्णन करता हो या किसी ने अक्षरश. विवरण लिख कर फिर से उसे दोहराया हो, ऐसा अनुभव होता है। उसमें संदेह करने की धृष्टता नही हो सकती। इसी बल पर उन्होने अपने काव्य को आदि पर्व में एकाधिक बार इतिहास कहा है। हाँ, यों घटा था, और मैंने उसे देखा था, अनुभव किया था। यह केवल कल्पना का सृजन नहीं है---इतिहास-प्रदीप है', ऐसा व्यासजी ने कहा है। सचमुच इतिहास- प्रदीप है, पर आखिरकार एक महाकवि के छारा प्रज्वलित इतिहास प्रदीप है यह; अत: कवि अपने सार्वभीम दिव्य चक्षुओं से उसके अनुसघानो, उसके अर्थों और उसके पीछे कितने ही वर्षों पूर्व रोपे गए हेतुओं को देखे बिना नहीं रह सकता। भीष्म शिखंडी के हाथों मारे गए, मात्र इतना कह देने से उन्हें संतोष नहीं होता। शिखंडी भीष्म का वध कैसे कर सकता था? कहाँ सूर्य और कहाँ पतगा। अत व्यासजी ने शिखडी के पीछे उसकी प्रारंभ की और पूर्व जन्म की अम्बा द्वारा लिये जाने वाले बदले की बात को युद्ध के प्रवाह के साथ जोड़ दिया। द्रोणाचार्य का वध धृष्टय्युम्म कर सकता था, यह बात भी पहली नजर में स्वाभाविक नहीं दिखती। अतएंव उन्होंने द्रोण-द्रपद के बाल्यकाल, द्वुपद द्वारा किए गए अपमान, द्रोण द्वारा लिये गए बदले, तक्षक, अर्जुन, कृष्ण, शिशुपाल आदि कितने ही वैरों के, यों अंत से पहले के, लेकिन अत्त की तरफ ले जाने वाले बलों को प्रकट किया था। इतिहास और समाज को सचेत दृष्टि से देखने वाले द्रष्टा के रूप में उनकी मान्यता थी कि इतना विशाल भीषण विनाशकारी युद्ध सिर्फ दो भाइ्यों के झणड़े से नहीं हो सकता था, इसलिए उन्होने अपने दिव्य चक्षु से, जिसे उन्होंने स्वयं इतिहास-प्रदीप कहा, उसमें पहले के और वर्तमान तमाम बलों को व्यक्त करने वाला महाकाव्य रचा था। हल भले ही कवि-कल्पना शहला व्यारब्यान 21




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