संक्षिप्त शरीर विज्ञान | Samkshipat Sharir-vigyan

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Samkshipat Sharir-vigyan by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नर-कंकाल दे (ान्सठोडी-नामक कश हृड़ी के ढारा संयोजित है। ऊपर के प्रत्यंग श्रौर देद के यीच में यही पक मात्र संयोजक है। स्कंघास्वि के श्रगंभीर पात्र में प्रगंडास्वि (प८००८१७०५), झर्थात्‌ चाहु के उपरिस्थ डी का दद्दत्‌ गोलाकार मस्तक, शिथिल रूप से संयोजित हैं। इसका मस्तक, स्कंघास्थि पात्र फे मस्तक से यड़ा होने के कारण, ददाथ की इच्छा के श्रदुसार स्वाधीन भाव से घुमाया जा सकता दै। प्रगंडास्थि का कांड लंबे स्तंस के माफ़िक दे, जो मस्तक से इड्टी के शेप प्रांत तक जाकर चौड़े विश्दखल पेट के रुप में परिणत इुआ है । इस घेट के वाहर श्रौर भीतर का किनाय तीच्ण है । प्रगंडास्थि के डपरिस्थर प्रांत में (7626 (0961051£59 नॉम की पक चाहर: निकली हुई हृड़ी देख पड़ती दै। उसमें स्कंधास्थि की कुछ पेशियाँ संयुक्त हैं । शेष प्रांत के कोने में श्रग्रचाहु की कुछ पेशियों सलचिवेशित हैं। धरगंडास्वि की निम्न सीमा में जो सेट 'वस्थित है, उसमें पक वाहर निकली हुई हड्डी श्रीर एक गहर है। इनमें से प्रथम श्रस्थि श्रम्रवाहु के वाह्यास्वि के मस्तक के संधियुक्त हु हैं; श्र शेपोक्त श्वस्थि श्म्नवाइ के श्राश्यतरीण श्रस्थि के साथ सम्मिलित हुआ है। पहली दृड्टी का नाम रेडियस (20105) या चहिःप्रकोष्नास्थि श्र दूसरी का नाम अ्लना . ( प02 ) या. झंतःप्रकोष्टास्थि है । रेडियस-दड्डी चोरस, ऊपर गोलाकार श्रीर नीचे चौड़ी है । इसका मश्तक, जो श्रगंडास्थि श्रीर श्रलना नाम की हड़ी के साथ संयुक्त हुश्रा है; श्रलना के निकटवर्ती स्थान के ऊपर स्वांधीन




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