मुक्ति - मंदिर | Mukti - Mandir

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Mukti - Mandir by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सरुभूमि ओर जलनिधि से एक ध्वनि ই मित्र ने लंडन की जनता को मरा परिचय देते हुए सिंध को मरुस्थल कहा था ! क्‍या मरुस्थल के पास कोई संदेश नहीं हे? शोरा ( 21०४८ 0 8०08. ) के सदृश्य शायद ही कोई वस्तु व्यापार की जन्नति में काम आती हो; क्षतु यह वस्तु चिलीदेश ( दक्षिण अमेरिका का एक मुख्य प्रांव ) की सझुभूसि में ही पाई जाती है उस मरुप्रंत में कोई पेदाबार नहीं होती। वह भूमि वध्या हे, कतु बही एर यह उपयोगी चीज़ बेहिसाब पाई जाती है। सिंघ भी एक मरस्थल हे, किंतु वर्ह भी एक सहाम्‌ फल्नप्रद वस्तु ৬১ ৬২ के--एक रहस्यमय आलोक के--दशन होते हैं । यह ५ ४ आलोक है अनेक में एकता का, एकता में विभिन्नता का | इसी उदार आलोक की ध्वनि सिंधी कविता में ৬২ / ৯২ ॐ, (~ ৫৩ भ (~. ১ (~ मेरा नख्र निवेदन है कि सिध के कक्ष्यं मौर सिद्ध सहा- त्माओं का यही गहन आलोक राष्ट्रीय जीवन को सचेतन ^ ১ 2 ৬২ भ ৪ ^ £, ৯২ बतान के लय आवश्यक হ | 1 नदों के ता ॥ पू ২.৬ ৬১ ৬১. ৯৬ ৬২ ৬ ৯৩৯১ भ बजा ने बड़-बडु आश्रम बनाए थ। वहम उन्न वश्व क ३ 4১ अनंत रहस्य का ध्यान किया था, ओर वेदिक কাল >, रचना की था । उनमें से एक मन्न इस मकार है-- ८६ ৬২ ( _ ১৩, € इ ग ¢ वह्‌ चाकाश चोर प्रधेवी मै, सवेन व्याप्त है । उह জী ¢ =, ৬২ ০০৯ भ अंक ৬২ न 9१ दर्शी है । उसने सत्य के सूत्र से संसार को बनाया हैं ।




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