तत्वार्थ श्लोकवार्तिकालंकार | Tatvarth Slokvartikalankar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
648
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तत्त्वाथचिंतामणि:
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आचाये कहते हैं कि ग्रन्थकारके नास्तिकता दोषके दूर करनेका और प्रशंसा प्राप्त करनेका
वह उपाय मी प्रशस्त नहीं है | अतः. वह तीसरोंका उत्तर भी निस्सार है । जब कि---
श्रेयोभाग प्रम्थेनांदेव वकतुनास्तिकृतापरिहारघटनातू तद॒भावे सत्यपि शास्रारम्मे
प्रमात्मानुध्यानवचन तदनुपपत्त।
वक्ता अन्थकारने आदि सूत्र ही कहें गये मोक्षमागका वात्तिक और भाष्य द्वार समर्थन
किया है | इसीसे उनका नास्तिकपन दोष दूर हुआ घटित हो जाता है। उस यदि मोक्षमागका व्याप्ति
द्वारा, हेत दृष्टान्तोंसे समर्थन न करते ओर शाखके आदिम परमात्माके वढिया ध्यान करनेका
वचन कह भी देते तो सी वह नास्तिकताका परिहार नहीं हो सकता था | क्योंकि कई मनुष्य
४ विपकुम्स पयोगु्खे!” के न््यायानुसार छोक रिशानिके लिये कतिपय दिखाऊ काम कर देंते हैं |
पश्चात् उनकी कलई खुल जाती है । अब चौथे कोई महाशय उक्त शंकाका उत्तर इस
प्रकार देते हैं. कि---
“शिष्टाचारपरिपालनसाधनत्वात्तदनुध्यानवचन तत्सिद्धिनिबन्धनमिति केचित् !! ।
४ गुरुजनमनुसरन्ति शिष्याः” इस न्यायसे गुरुपरिपाटीके अनुसार अनिन्दित चरित्रवाले
शिष्ट-संज्नोंको अपने गुझुओंका पुनः पुनः ध्यान करना और उसका अन्थकी आदिम उल्लेख
कर कथन करना अपने कर्त्तव्यका परिषालन है| इस कारण गुरुओंका ध्यान उस शाख्रकी सिद्धिका
कारण है । गुरुआंका पीछे ध्यान करनेसे ही शिष्टठोंके आचारका परिपारन हो सकता है । ऐसा कोई
कहते हैं | अन्थकार कहते हैं कि---
तद॒पि ताइशमव । खाध्यायादेरेव सक्लाशिशचार॒परिषपालनसाधनलनिणेयातू |
. वह कहना भी तैसा ही है अर्थात् यह भी कार्यकारणमाव पूर्वोक्तवादियोंके समान अन्वय-
व्य्तिरिकको लिये हुए नहीं है । क्योंकि स्वाध्याय, देवपूजा, सामायिक आदि ही सम्पूर्ण सुशिक्षा-
प्राप्त सज्जनोंके आचारका पूणे रीतिस पाछुन करानेवाले साधन निर्णीत किये गये हैं | केबल
. गुरुओँके ध्यानसे तो शिष्टाचारं प्रगट नहीं होता है। क्योंकि अनेक चोर, मायाचारी (दगावाज),
वेश्या, शिकारी छोग भी सम्मानार्थ अपने गुरुओं (उस्तादों) का ध्यान किया करते हैं ।
अब पूर्वोक्त शंकाके चारों उत्तरों में अस्वर्स (असंतोप ) बताकर स्वामीजी महाराज खयय
उक्त शंकाका सिद्धान्तरूपसे समाधान करते हैं ।
शास्रस्योत्पत्तिहेतुलात्तदथेनिषेयसाधनत्वाद्य परापरणुरुप्रवाहस्तत्सिद्धिनिव-
न्धनमिति धीमद्ू तिकरस.
ह बी
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