तत्त्वार्थ - लोकवार्त्तिकालंकार भाग - 2 | Tattvarth Lokavarttikalankar Bhag - 2

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Tattvarth Lokavarttikalankar Bhag - 2  by माणिकचंद कौन्देय-Manikchand Kaundey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भीविद्यानंद-स्वामिविरचित तत्त्वार्थ छोकवा त्तिकालंकार: तत्तायचिंतामणिटीकासहितः ( द्वितीयखंडः ) अय सम्यग्दर्शनविप्रतिपत्तिनिवृक््ययंमाह -- अब इतके अनन्तर आदिके सूत्रमें कद्दे गये पह्लिले सम्पग्दर्शन गुणके लक्षणमें पड़े हुए जनक विवादोंकी निबृत्ति करनेके लिए सूत्रकार श्रीउमास्वामी मद्दाराज दूसरा सूत्र कहते हैं--. तत्तार्थश्रद्चानं सम्य्दर्शनम्‌॥ २ ॥ तत्वरूपसे निर्णीत किये गये वास्तविक अथोका श्रद्धान करना सम्यग्दशन ই | नद सम्पग्दर्शनश्द्धनि्दंचनसामथ्यादेव सम्यग्दर्शनस्वरूपनिर्णयादक्षतद्दिभातिप- सिनिबूत्ते! सिद्धत्वाचदर्थ तलक्षणवचन न युक्तिमदेवेति कस्यचिदारेका, तामपाकरोति-- यहां शंका हे कि सम्यक्‌ ओर दशन शद्दोंकी निरुक्तिकी सामर्थ्यसे ही सम्यग्दशन गुणके स्वरूपका निणैय करना हो जावेगा और उसमें नाना प्रतिवादियोंके पडे हुए विवादोंका भी उसी निरुक्तिसे निवारण हो जाना सिद्ध है, फिर उसके लिए उमात््वामी मद्दाराजका सम्यग्दर्शनके लक्षणकों कहनेवाला सूत्र बोलना युक्त नहीं है । हयान ओर चारित्रका लक्षण भी छक्षणसूत्रोंके बनाये विना दी केवल निरुक्तिति ही आप जैन शट कर लेते हैं, फिर सम्यग्दशनमें ही ऐसी कौनसी विशेषता है कि जिसके लिए एक स्वतंत्र सूत्र बनाया जा रद्द है ?। अत्यंत आवश्यकता पडनेपर अधिक उदात्त अर्थको थोडे शद्दोंमें कहनेवाला नवीन सूत्र रचा জালা ই | बैयाकरण तो आधी मात्राके ही लाधव हो जानेसे पृश्न॒जन्मके समान उत्सव मानते हैं । इस प्रकार किसीका अनुनयसद्वित आद्षेप है । उसका पूज्य- शरण श्रीविधानदस्वामी निराकरण करते ह । सम्यक्व भ्रशतार्थे दशावालोचनस्थितो । न सम्यण्दहीनं छम्यमिष्टमित्याह लक्षणम्‌ ।। १ ॥




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