ईशादी नौ उपनिषद | Eshadi Nau Upnishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
448
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ & श्रीपरमामने नम ॥
ईशावास्योपनिपद्
यह ईश्ायाओोपनिपत् शुक्ल्यनुर्ेदमाप्पशासीय-सहिताका चालीसवॉँ
अध्याय है | मनन भागा अश होनेसे इसफा विशेष मदृच्य है | इसीफ़ो सयसे
पहला उपनिपट् माना जाता है | शुक््ल्पतु॒रवेदरे प्रथण उनतालीस अध्यायोर्मे
कर्ममाण्लका निरूपण हुआ है। यह उस काण्डशा अन्तिम अध्याय है और इसर्म
भंगपत्तह्यरूप ज्ञानकाण्डका निरूपण क्या गया है । इसके पहले मन््नम ईशा
वास्पम वाक्य आनेसे इसका नाम श्यावास्यः माना गया दे ।
जान्तिपाठ
ऊँ पर्णमदः पूर्णमिदं एर्णात् पृर्ण धुदच्यते ।
पर्णस्य पर्णमादाय प्रणमेयायशिष्यते ॥
४० शान्ति शान्ति शान्ति
डे०->सचचिदानन्दयन अद स्यह पखहापूर्णमत्मय प्रशारसे पृण है
इद्मच्पट ( जगत् भी ) पूर्णमन्यूण (ही ) है ( क््यारि ) पूण' तूल्उत पूरे
( परत” ) से दा पूर्ण मुज्यह पूर्ण, उद्च्यतेरूउ पन्न हुआ है पूर्णस्यन्पर्णरे
पर्णमल्पयणरे, आदायरूनिकाठ लेनेपर (भी) प्रर्णमत्यूण. एवनतीः
अपुशिष्यतेज्यच रहता हू ।
व्याय्था--पह सबचिदानन्दघन परब्द्मा पुरुषोत्तम सत्र प्रफाससे सदासदा
परिपूर्ण | यह जगत् भी उस पखहसे ही पूर्ण है; क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण
पुरुषाचप्से ही उद्मज हुआ है ) इस प्रसार पर्क्षाती पूर्णतासे जगत् पूर्ण है; इस
ल्यि भी वट परिपूण ऐ। उस पृण्ण ब्रह्मेसे पृर्णनो निकाल लेनेपर भी बह
पूर्ण ही बच रद्दता है |
निविध तापकी शान्ति हो ।
# यह मन्त्र $हटारण्यक उपनिषदकें पाचवे अध्यायक्े प्रथम माह्मणकी प्रथम
कश्न्कारा पूवाइंरुप है ।
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