जन्तु विज्ञान | Jantu Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेडक रे श्र का जाल (ए८०) फैलकर एक सुन्दर पतवार का काम देता है। जालदार (सध०960 ) पिछली टाँगो को शी ध्यता से फंलाने पर पानी के दवाव से शरीर भागे वढ जाता हैं। ठाँगो को सि कोडकर मेढक उन्हे फिर से तेजी के साथ फेलाता है जिससे शरीर और आगे बढ जाता है। इस क्रम को वार-वार दोहराने से मेढक तेजी से पानी में तैरत। है। - मेढक में पूछ का अभाव वास्तव में असमजस में डाल देता है क्योकि पानी के अन्य जन्तुओ जैसे मछ ली, घडियाल, मगर, न्यूट्स (1उ८५15) इत्यादि में तैरने में शावितशाली पूंछ विदेषरूप से सहायता देती है। पूंछ के अभाव को पुरा करने के लिए ही मेढठक की पिछली टॉँगें लम्बी, शक्तिक्ाली और जालूदार हो जाती हूँ। यदि मेढक में पूछ होती तो वास्तव में कूदने में वडी वाघक होती। चलन में मेढक की अगली टाँगो का उपयोग केवल इतना ही है कि वह उसके स्ब्व्य पद कोप शरीर को इच्छित. दिदया में सोडकर उस दिशा में कूदने सं सहायता देती हैं। तालाव के अधिक गहरे होने पर मेढक अपने फेफडों को फुलाकर, साँस लेने स्वर कप. चित्र ८--उतराते समय मेढक के नेत्र तथा नासा- छिद्र पानी की सतह के ऊपर रहते हैं। के लिए जल की सतह के ऊपर उठाये हुए अपना ४ था अधिक समय उतराते हुए विताते हैं। उतराते समय इसका दारीर निष्क्रिय रहता हैं, यहं अपनी टाँगो को आधा या पूरा फेलाये हुए सघा रहता है। उतराते समय ये ,बडे चौकन्न रहते हैं, किसी प्रबार की भाहट मिलते ही ये तुरन्त गोता १ ९ लगाकर गोझल हो जाते हैं। मेंढक की टर-टाँ ररं-टाँ (00८1 मास वर्षा ऋतु में विशेषरूप से सध्या के समय इनकी चित्न ९--नर और मादा. टर्र-टाँ टरं-टाँ की आवाज सुनाई देती है। नर की मेढेक मं अन्तर आवाज मादा की अपेक्षा अधिक तेज होती है। मैथुन गद्दी सर से पका




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