अथ लीलावतीस्थ | Ath Lilawatisth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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परशुराम शास्त्री - Parshuram Shastri
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भास्कराचार्य - Bhaskaracharya
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीः ।
रा
“+-कैः*---
समस्तभूतलनिषासी लेखनवाचनज्ञाससंपन्न विविधविद्याचरागी
महाशयोको उत्साहपूर्वक पिवेदन कियाजाताहै फकि/--
१ इस अनादि बनतसंसारमे भुगपतकी इच्छासे ऐसे ऐसे
पदार्य निर्माण कियेगयेहें कि, मिन्होफा पिचार करनेमें अल्पक्ञ
जऔवोंदी जूह्टि भ्रांत होतीहै. और चयाय॑ पिर्णय॑ करना होता'
नहीं, यह सर्व मलुष्यमात्रकों स्वानुसवसें निश्चितहै, कारण; उ-
सीपदार्थज़ों कोई तों कुछ कहतताहे। ओर कोई कुछही कहता
है; परंतु बुह्चिगत भेर होनेंसे ज्ञानमी अनेक भेदभिन््त हो-
कर ध्यक्तिमान्रको उसउस पदार्थका निव्बब करदेताहे थेही
एफ ईशरका अ्दिन्य सामर्य्यका प्तावहै. यह वात तें
शह्यसिद्धांतसम्मत्त है. ऐसे इस संसारकी स्थितिफा पिचार
करके अनेक लोक तसवपेत्ता होफर कह हैं: इसवास्ते
समस्त महादायहो | विचार करिके » इस संसारढी
स्थितिका दिक्नार करमा होव; ते क्या उपाय करना चाहिये १
मेरे विचारमें तो आत्ताहै कि; यदि संसारस्चितिकी भिज्ञासा
होय; ते यावत्् मनुष्यमाजनें निर्मत्सर बुद्धिसे ज्ञानउपार्जन क्
स्ना् चाहिये. ज्ञानके मिलानेमें अनंत्त उपाय दर्शक शास्तरहैं-
प्रत्येक शारूममे परथकू पृथक रीतिसे हम चका खुलासा क-
रेके ज्ञानभाप्त होनेंके उपाय वत्तायेहें, अतभाप दस
घुक्ति मिलना यह फ्न कहाहै. इससे सुक्तिसाधन ज्ञानही है.
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