अलंकारचंद्रिका | Alankarchandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about लाला भगवानदीन - Lala Bhagawandin
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अधथालंझार
१--इ प्मा[*
अर्थालड्रारो में सर्वात्तम और अनेक अलझ्जारों का मूल
उपमा अलड्भार है । इसी से इसे पहले लिखते रह
दोहा-रूप रंग गुन काह को काह के अनुसार ।
तायों उपया कह्वत हें जे सुबुद्धि आयार ||
जाकी वरनन कॉजिये सो उपसेय ग्रमान |
|
5:
जाकी समता दीजिये ताहि कहिय उपसान |
उपमसेय रु उपमान में समता जेहि छ्विते होय |
मो साधारन घम है कहते सयाने लोग ॥
सो, से, सी, इव, बल, लॉ, सम, समाच उर आन |
ज्यों, जैसे, टरगि, सरिस, जिसि, उप्सावाचक्त जान ॥
कहीं-कहीं “रंग, नादे, न्याय ओर मतिन” भी वाचक
होते है ।
विवरण--जब दो वरुतुओं में पृथकता रहते हुए भी कोई
समता वर्णन की जाय तब उपमा अलंकार होता हे | समता
आकृति, रंग ओर गुण की हानी चाहिये | वर्णन करने में जिसको
% अमगरेजी में इस अलंकार को 'सिमिली' ( 51716 ) ओर फ़ारसी तथा
उदू में 'तशबीह! कहते हैं
User Reviews
No Reviews | Add Yours...