काव्यालंकार | Kavyalankaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
491
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२४ )
(थ ) कुटज्ञ--[ झब्यालदार ७६० ) प्रमायों के अमाव में कुंदज के
विषय में कुछ चहना असंभव है। हिमालय प्रदेश में यह नहो पाया जाता
(8 ) छरीर--( काव्यालड्भार ७-२५ ) यह कॉदेदार पौधा प्राय-
रेगिस्तान मे ( राजपुतराना, दिल्ली और आागदा ) में उलन्न होता है। यह ऊँटो
का भोजन हे !
(ज ) शामी--( काव्यालट्वार ७-२५ ) यह दो से दस फीट का पौधा
होता है । काव्यालट्वार में शमी जिस पौधे के लिये आया है वह महुस्यद्र मे
उनसे बाछा बयूछ का एक विश्ञेप प्रकार है )
( ञझ ) कदली--( काव्यालट्टार ५-२९ ) यह काइमोर में नहों हो
सकता ) इसके लिये बंनुकुछ जलवायु वर्षा, नागपुर तथा बम्दई के समीपस्य
प्रदेश का है। उतर प्रदेश मे मो यह यत्र-तत्र पायी जाती है ।
(भर ) ताइ--गड मछावार मे पाया जाता है ।*
उपरीक्त दप्त वृक्षों की नामावली में ुब्जक जौर शमी हो काश्मीर मे पाये
जाते हैं। बज़ुक, कंदकी और गीर मध्य देश में पाये जाते हैं। करीर भी मध्य
देश के समीप रेगिस्तान की शुष्क जलवायु मे वायी जांती है। बशु दज्निण
पश्चिम भारत में मी पाया जाता है। चम्पा यद्यपि क्ात्ताम की उपज है फिस्तु
सध्यदेश में भी इसके वौधे आरोपित किये जाते हैं। 'अयुब और कुटज' कया
मध्य-प्रदेश में हो सकते हैं प्रमाथों के अमाद में इस पर कुछ कहना कठिन है।
७, अषक्ष--( क ) माप-(काव्यालड्वार १०-१९) इसके लिये न्यूनतम ८०
फैरेमहाइट तापमान की आवश्यकता होती है। काइमीर का तापमान ६४ फैरेन-
हाइट में कभी अधिक नहो होता । दूसरी दात यह है कि माय के लिये बरसने
के दाद पानी को सेत से टिक्ता नहीं चाहिये । निरन्तर वर्षा भी पपेक्षित होती
है। माप को शाज वी भाषा में उड़द कहते हैं। यह प्राय उत्तर प्रदेश मे,
कहों-कही मध्य प्रदेश तथा विहार में उचचन्न होता है। महाराष्ट्र में भी इसको
झैची होती है ।
( ख ) कोड़य--कोरे या कदमप्त का संस्कृत नाम कीदव है। इसके लिये
न्यूनतम ७५ फेरेनहाइट तापनान की आवश्यकता होती है ! विरन्तर साथारप
वर्षा तथा बरसने के बाद पानी का सैद से विकठ जाना इसकी उपज के छिये
२३. वाह ह्रोणश३३७ एिजाए।ड एठो 1, फ़ु 4894
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