बृहदारण्यकोपनिषद | Brihadaranyakopanishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
99 MB
कुल पष्ठ :
1394
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २१ )
विषय
१८५-वामनेत्रस्थ इन्द्रपत्नी तथा विराटका परिचय और उन दोनोंके
संस्ताव; अन्न) प्रावरण एवं मार्गादिका वर्णन
१८६-प्राणात्मभूत विद्वान्की सर्वात्मकताका वर्णन, जनकको अभयप्राप्त
और याशवल्कक््यके प्रति आत्मसमर्पण ही ***
तृतीय ब्राह्मण
१८७-जनकके पास याशवल्क्यका आना और राजाका पहले प्राप्त किये
हुए इच्छानुसार प्रश्नरूप वरके कारण उनसे प्रश्न करना
१८८-पुरुषके व्यवद्वारमें उपयोगी पॉच ज्योतियाँ
१-आदित्यज्योति हो
२-चन्द्रज्योति व्कह ***
३-अश्निज्योति ल् का. ०्भक ०००
४-वाग्ज्योति कक ७ & (७ ० ०
५-आत्मज्योति के '
१८९-आत्माका स्वरूप जे जे
१९०-आत्मा जन्म ओर मरणके साथ देह्देन्द्रियरूप पापको ग्रहण
ओर त्याग करता है. **'* हे
१९१-आत्माके दो स्थानोंका वर्णन |
१९२-स्वप्तावस्थार्मे रथादिका अभाब है; इसलिये उस समय आत्मा
स्वयं ज्योति है के
१०३-स्वप्रसष्टिके विषयमें प्रमाणभूत मन्त्र
१९४-स्वप्नस्थानके विषयमें मतभेद और उसके खयंज्योतिष्ठका निश्चय
१९५-सुषुप्तिके भोगसे आत्माकी असद्भता अ
१९६-सवप्नावस्थाके भोगोसे आत्माकी असड्गभता
१९७-जागरित-अवस्थाके भोगोंसे आत्माकोी असज्भता
१९८-पुरुषके अवस्थान्तर-सश्चारमें महामत्स्यका दशन्त
१९९-सुषुप्ति आत्माका विश्रान्तिस्थान है; इसमें श्येनका दृष्टान्त
२००-सप्नदद्यनकी स्थानभूता हवितानाम्री नाडियोका वर्णन
२० १-मोक्षका स्वरूप प्रदर्शित करनेमें स्रीसे मिले हुए, पुरुषका दृश्टांन्त
२०२-सुषुप्तिस्थ आत्माकी निःसज्ञ और निःशोक स्थितिका वर्णन
२० ३-स॒धुप्तिमें खवयंज्योति आत्माकी दृष्टि आदिका अनुभव न होनेमें हेतु
२०४-जागरित और स्वप्तमें पुरुषको विशेष शान होनेमें हेतु
२०५-सुषुप्तिगत आत्माकी अभिन्न स्थिति
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