श्रुतबोधः | Shrutbodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
34
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अ परिशि का
थ प्रिशिष्टमू !
हि अन्न 3 अन्
पद्म नाम चतुष्पदी। सा द्विविधा जाति: दृत्त च॥ मात्राल॑-
ख्याता जातिः वर्णसंख्यातं बृतम् । बूत्त त्रिविधम् 1 समम्
अर्धसम॑ विषम च ॥ तेषां निशश्नलिखितानि छक्षणानि बृत्त-
रत्नाकरे निर्देष्ठानि ॥ बथा-
अड्जयो यस्य चत्वारस्तुस्यलक्षणलक्षिताः ।
३] है
तच्छन्दःशाद्रतत्तत्ञः समवपृत्त् अ्नचक्षतत ॥१ |!
प्रथमाड़प्रिसमी यस्य तृतीयश्धरणों भवेत् ।
हुक हर मुर्
द्वितीयस्तुयवद्ग्त तदद्डसममुच्यते ॥ २ ॥
यस्य पादचतुष्केपि लक्ष्म भिन्न परस्परम।
हि 26 91 ५ ५
तदाहुविषमं वृत्तं छन्दःशाखविशारदाः ॥ ३ ॥
भाषार्थ---जिसमें चार पद् हो उसे चतुप्पदी कहते हें । बह २ प्रकारकी
जाति और बृत्त । जिसमें मात्राकी संख्या हो उसको जाति कहते है।
जिसमें व्णोंकी गणना.हो डसे वृत्त कहते हैं ! वृत्त तीन प्रकारके हैं सम,
अ््धसम और विषम | उनके छक्षण वृत्तरत्ताकरमं इस प्रकार
डिखे हैं- क्
जिसके चारों चरणेमें समान छक्षण हीं उसको छनन््दःशाख्रके ज्ञाता
छोग खमबृत्त कहते हैं ॥ १॥ और जिसका प्रथम चरण और तीखरा
चरण ठुल्य हो दूसरा और चतुर्थ छुल्प हो उसको अद्धंसम कहते हैं ॥
॥ २॥ जिसके चारों चरण आपसम भिन्न छक्षणके हो उसको छन्द जाता
छोग विषमबृत्त कहते हैं ॥ ३॥ हे
गणलक्षणम् ।
मख्तिगुरुखिलघुअश नकारो भादिगुरुः पुन्रा-
दिलयघुर्यः । जो गुरुमध्यग॒तों रखूमध्यः सोन्त्-
गुरु: कथितोन्तलघुस्तः ॥ १ ॥
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