अध्यात्मयोग और चित्त-विकलन | Adhyaatmyog Aur Chitta-vikalan

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Adhyaatmyog Aur Chitta-vikalan by वेंकटेश्वर शर्मा -Venkteshwar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-सकेश ३ समस्त हैं कि यिना युद्धि ऊ प्रशष ऊ प्रति मश में नहीं को सा सयती। अठ ই পি নিলা पर मी प्यान देते हैं। डिन्‍्तु उनड लिए पिशेपव दाहजगत्‌ ही, विपय दी पा समाज दी प्रधान ६। उनझी दृष्टि म मानसिऊ शक्तियाँ गौश हैं। उरई इनढी झ्राजरप्रक्ता पहीं तऊ प्रदीन द्वाती दे जहाँ प्राहतिक शक्तिवा का गश म करमे में उनस सशायता मिल । फ्रलत मानसिक शक्ति की विशप उप्नति नहीं होती । मौतिक বদলি ता पयायाद्मा फा पदम यादी ४, सिन मानसि उप्तनि प्रायः प्राथमिऊ अ्रमस्‍्पा ম ঘা ছেআাতী € | प्रत मुप समी साधनों एर्प उपकरणा क॑ उपम्पित र्न दषः मी मनुप्प की तृप्ति नही द्वती। उपकरण भर भौतिक बिशान अदुगर एक दशर के पि्यस में स्पछियां की सद्दायता करन हं। भरत अतुप्त स्यक्ति सोभन लगता है ক্ষি उसे समाज स बांछित सुर नही मिल सस्ता; बोई ढाह्म दिपय उस ब्रमिलप्रित হল हुए या शासित दी प्राप्ति नही करा सक्‍ता। तीना बात्वां म॒ एक ही मयार वी शार्ति प्रदान परमंय्राछी काइ बस्तु उस दिपाए नहीं देशी। गइ सवजनजूए अ्रप्पपन करता हे श्रीर प्रस्त म द्वार मानकर पैट याता है। जैस पौरट न ছা €- कदित परिश्रम करके मे झिपा भ्रप्यपन गइरा क्न ক न्याप पमका। भ््बु जहा हूँ शाग किए में जिपर प्रगाडी भौर ररिज बदणे सा टी । जांगा केयछ यदी सत्प ६ লতী লাস লঙ়ল হম হল ।९ मौगिक विजान मे पहुस उप्तति की € परन्तु स्यद्ि प्री दृपा झ्रध् भी नहीं बसी । भीतिऊ विशान अ तयभेए पराझ्माय गिड्धानां $ गिधार डॉराशंसल दवा रहे हैं। थे कहाँ सा रद हैं, ठ६ नदी जात ॥॥ उनवा इऋइना है एम श्रपन प्रायिष्कासस्मुग प्रतिमा एप पिड़ान का गये करते हुए मी खापता क्र सप््भाव रुप एम उमड़ी सगतियाँ से मालिक रूप स नमित ह। हम कर्शां जा गए दें नहीं जानते और ने दर्गे गद्दी शात १-1 887 ४133 | তেতো अध्ये कणु 100 ৮] তে চট হে চিতা १ए४४ ত00 5৮০০ হাতেলন ০০৮ এছ চিত 0 ॥18छते ताप এ] চট ১০৩ ज्म जज छ० ४९7 (४७७ छल ~~~ -~ ~ ~~ আদ] ववाज गू क 10 १४ व्व ए ০ 1 प ए 1




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