श्रुतबोधः | Shrutbodh

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Shrutbadha by कालिदास - Kalidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ परिशि का थ प्रिशिष्टमू ! हि अन्न 3 अन् पद्म नाम चतुष्पदी। सा द्विविधा जाति: दृत्त च॥ मात्राल॑- ख्याता जातिः वर्णसंख्यातं बृतम्‌ । बूत्त त्रिविधम्‌ 1 समम्‌ अर्धसम॑ विषम च ॥ तेषां निशश्नलिखितानि छक्षणानि बृत्त- रत्नाकरे निर्देष्ठानि ॥ बथा- अड्जयो यस्य चत्वारस्तुस्यलक्षणलक्षिताः । ३] है तच्छन्दःशाद्रतत्तत्ञः समवपृत्त्‌ अ्नचक्षतत ॥१ |! प्रथमाड़प्रिसमी यस्य तृतीयश्धरणों भवेत् । हुक हर मुर् द्वितीयस्तुयवद्ग्त तदद्डसममुच्यते ॥ २ ॥ यस्य पादचतुष्केपि लक्ष्म भिन्न परस्परम। हि 26 91 ५ ५ तदाहुविषमं वृत्तं छन्दःशाखविशारदाः ॥ ३ ॥ भाषार्थ---जिसमें चार पद्‌ हो उसे चतुप्पदी कहते हें । बह २ प्रकारकी जाति और बृत्त । जिसमें मात्राकी संख्या हो उसको जाति कहते है। जिसमें व्णोंकी गणना.हो डसे वृत्त कहते हैं ! वृत्त तीन प्रकारके हैं सम, अ््धसम और विषम | उनके छक्षण वृत्तरत्ताकरमं इस प्रकार डिखे हैं- क्‍ जिसके चारों चरणेमें समान छक्षण हीं उसको छनन्‍्दःशाख्रके ज्ञाता छोग खमबृत्त कहते हैं ॥ १॥ और जिसका प्रथम चरण और तीखरा चरण ठुल्य हो दूसरा और चतुर्थ छुल्प हो उसको अद्धंसम कहते हैं ॥ ॥ २॥ जिसके चारों चरण आपसम भिन्न छक्षणके हो उसको छन्द जाता छोग विषमबृत्त कहते हैं ॥ ३॥ हे गणलक्षणम्‌ । मख्तिगुरुखिलघुअश नकारो भादिगुरुः पुन्रा- दिलयघुर्यः । जो गुरुमध्यग॒तों रखूमध्यः सोन्त्‌- गुरु: कथितोन्तलघुस्तः ॥ १ ॥




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