स्वाधीन - भारत | Swadhin - Bharat

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Swadhin - Bharat by छविनाथ पाण्डेय -Chhavi Nath Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वंग-विच्छेद थ्‌ 5 पाव्क--आप बहुत ठीक कहते हैं । वंग-भंगसे वास्तवर्मे चड़ा लाभ हुआ | सम्पादक--इसमें तो कोइ शक नहीं । पर आप जानते ही हैं कि कमलके साथ साथ कीचड़े भी रहता है। इस लाभके साथ उसने कुछ बुराइ भी पेदा की। पहले तो हम लोगोंके भेताओंसें सतभेद हो गया। ने तथा गस दलका नास जो आजकल आप बहुधा सुनते हैं, वह इसीका फल है। कदाचित्‌ आप इसके अथको तत्वतः नहीं समझ सके होंगे, तो सुनिए । इसके कई अर्थ हैं, कोई तो एककों डरपोंक और दूसरेकों निर्भय दल बतलाता है। कोई हलेकी सरकार या नोकरशाहीका मित्र वतलाता है, इत्यादि । मेरी समझमें इनके उचित अथ यही होंगे कि एक तो गरियार वैलकी तरह चल रहा है. जो “दिनभर चले अढ़ाई कोस” और दूसरे वारह सिंहेकी तरह छलांग मार रहे हैं. कि कहीं “माड़ीमें सींग फँसा और मरे ।” अब पररुपर वेमनस्थ भी अधिकाधिक होता जा रहा है। एक दूसरे पर विश्वास नहीं रखता, उस पर अनेक प्रकारका दोषारोपण करता है। सूरत कांग्रेसके समय तो इसकी मात्रा इतनी वढ़ी थी कि वहाँ मराड़ा ही हो गया। इतना




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