व्यापार - दर्पण | Vyapar - Darpan

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Vyapar - Darpan by छविनाथ पाण्डेय -Chhavi Nath Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतकी चर्तपान शार्थिक दूद्ा द ब्यवसायमें जो रुपया लगाया ज्ञायगा वह डूव जायगा। पर धीरे धीरे वह अवस्था भी दूर दो गयी | भव छोग इस तरफ आने लगे हैं बौर कारखाना भादि जोलनेमें बडी उदारताके साथ 'घन-व्यय करनेके दिये तैयार रहते हैं । ,. भारतका विदेशी व्यापार भी दिन दिन उन्नतिपर हे। १८६४-५ से १८६८-६ भर्थात्‌ इन पाच चर्पोमें झायात निर्यातसे गौसत आमदनी ८७५६ लाख सपयेकी हुई। १६०६-१० से १६१५ १४यर्धात्‌ इन पाच चर्पों में मायात तथा निर्यातसे भौसत आमदनी ३७५,६० लाख रुपया घुई। लडाईके ठोक पदलेकी जामदनी ४४०,३३ लाख सपये थी | १६१६-२० में चद्ी आमदनी ५३४७६ हो गई भर १६२० २१में वदी आमदनी बढकर ५६ १,१६४ लाख हो गई। १६१२१ ९० में कई फारणोंसी व्यापार मन्दा रहा और केचछ ५१०,०५ लाख सपयेकी आमदनी हुई। युद्धके चाद सोमदुनीके एकापएक पढ़ जानेका प्रधान कारण यद है कि चस्तुझो का मूल्य बढ गया है। चजनके दिसायसे १६१३ १४ फे वनिस्वत १६२०-२९ में चहुत कम माठ आया गौर गया । ।. चिंदेशी ब्यापारका ब्यौरा देखनेसे प्रगट होगा कि चाहरसे माल साया है कप पर यदासे सेजा गया दै अधिक! नीचेकी तालिफामें दिखलाया गया है कि प्रतिवर्ष जो माल यहा मगाया जाता है उसका मदप ब्हाटकर आध्यातसे कितनी मामदनी होती है शौर उसमेंसे कितनेका प्रतिवर्ष सोना आर चादी स्माता है।




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