मानव और संस्कृति | Manav Aur Sanskriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.9 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानव का अध्ययन श्७
से संस्कृति हम उन सब व्यवह्ार-प्रकारों की समग्रता को कहते हूँ जिन्हें मानव
अपने सामाजिक जीवन में सीखता है । रंग, रूप आदि की भाँति संरकृत्ति मानव
को प्रकृति की देन नहीं है । संस्कृति सामाजिक आवश्यकताओं द्वारा जनित
मानव का भाविष्कार है । मनुष्य संस्कृति में जन्म लेता है, संस्कृतिसहित जन्म
नहीं लेता । शारीरिक विज्ञेषपताभों की भाँति संस्कृति प्रजनन के माध्यम से
व्यवितत को नहीं मिठती; सामाजिक जीवन में अनिवायं संस्कृतिकरण की प्रक्रिया
से व्यवित उसे ग्रहण करता है। समाज की परंपरा संस्कृति को जीवित रखती है ।
संस्कृति के अंतर्गत मानव के आविष्कार, निर्माण-कला,संस्थाएँ, सामाजिक संगठन,
कला, साहित्य, धर्म, विचार आदि विपय आते हैं । सांस्कृतिक नृतत्व का उद्देद॑य
अपनी विशिष्ट अध्ययन-प्रणाली द्वारा मासव-जाति की भिन्न-भिन्न शाखाओं
और समूहों की इसी संस्कृति का अध्ययन है । सामाजिक नृतत्व के भंतरगंत
सामाजिक तथा राजकीय संगठन, न्याय-व्यवस्था आदि' आते हैं । सास्कृतिक
नृतत्व का क्षेत्र अघिक व्यापक है । सामाजिक नृतत्व उसका एक महत्त्वपूर्ण
भाग है । समाज-व्यवस्था के अतिरिवत आविष्कार, अर्थ-व्यवस्था, कला, साहित्य,
विष्वास आदि का अध्ययन भी सांस्कृतिक नृतत्व के विपय-क्षेत्र में है ।
इस तरह नृतत्व को हम प्राणी-विज्ञान की एक विशेष शाखा मान सकते
हैं। नृतत्व के विशुद्ध प्राणी-दयास्त्रीय पक्षों के अतिरिक्त, इस विज्ञान के ऐति-
“हासिक, मनोवैज्ञानिक भर दादषनिक तीनों पक्ष महत्त्वपूर्ण हैं । ऐतिहासिक
अध्ययन के रूप में नृतत्वं मानव-जीवन के प्रत्येक पक्ष के विकास का अध्ययन कर
'कालान्तर में संस्कृतियों में होने वाले परिवर्तन-परिवर्धन का विदलेपण करता है ।
सामाजिक व्यवहारों के मूल स्रोतों तथा व्यवित को समाज में उसका स्थान दिलाने
में संस्कृति के प्रभावों का अध्ययन करने वाले विज्ञान के रूप में हमें नृतत्व का
'मनोवज्ञानिक पक्ष स्पष्ट दीख पड़ता है । जीवन-दर्शन तथा मूल्य, जिन पर मानव-
जीवन भाश्रित रहता है, बाह्य जगत के प्रति दृष्टिकोण, समाज और संस्थाओं
के अन्तर्गत आददों और यथायथ संबंध, आदि समस्याओं पर विचार करके नृतत्व
'हमारे सम्सुख एक दार्क निक अध्ययन के रूप में आता है ।
देश-देशा के निवासियों का रहन-सहन, उनके रीति-रिवाज, धर्म भर विदवासों -
आदि के संबंध में जानने की मानव-हृदय में सदा से जिज्ञासा की भावना रही
है, और इसी भावना में नृतत्व के जन्म का रहस्य निहित है । प्राचीन काल से
ही ऐसे तथ्यों का संग्रह होता रहा है जो विचित्र कथा से भी अधिक रोमांचकारी
और रहस्यमय प्रतीत होते थे । पर्यटक, सैनिक और व्यापारी देश-विदेश '
की अपनी थात्राओं में वहाँ के सामाजिक तथा धार्मिक जीवन के संबंध में आादचयं-
मा० सं०--२
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