प्रासादमज्जरी | Prasadamanjari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देव स्तुति तथा ग्रेयकर्ता का परिचय
गणाधिपं. नमस्कृत्य देवी सरखती वथा
नह्मा विष्णु महेशादि सूये दिसकरं सदा शा
शिल्पशाब्षप्रकेर्तारं। धिश्वकंमोी सहामुनिस् ।
सतसा बचसा नत्वा संधारम्भ करोम्यहम ॥शा
गणोंके अधिपति श्री गणेश, देवी सरस्वती, शर्मा, विष्णु, महेश आविको ओर
दिनको ग्रध्यक्तित करने वाले सूपेको नमस्कार करके शिल्पशाओ्रोको उत्छद्ट करने-
बाह्ले ( प्रयोजक ) महासुनि श्री विश्वकर्माकों मनवचनसे वंदन करके में भरभाशेकर
इस अंश्रके अनुधादका प्रएंभ करता हूं । रा
वशेडस्मिन् रामजी शिल्पी ख्यातोड्व बासतुकमंणि ।
तस्मिन्नेचान्ययेजातः.. प्रभाशइुरः.. पत्चमः ॥3॥
सुत्रधार इति ख्यातो नाथनामामिधानवान् ।
वात्तुमझरी नासाइये ,्ंथः प्राणकृतबाद' शिव३ ॥छ॥
तस्मिन्रैदान्तरगते. प्रासादमझ्री.. संज्षके |
सुप्रवोधिनों टीका असन््येडस्मिन हि. .करोति सः ॥०॥
भारदाज गोत्र जिससे श्री रामजीभा जेसे वास्तुकर्म में प्रख्यात शिल्पी हो गये ।
ऊसी छुलमे श्रो ओघडमाइ के कनिए पुत्र प्रभाशक्कर पांचवी पीढीमे हुए। नाथज्ञी
नामके विख्यात सूचधारने कल्याणकारी “ बास्तुमझरी अन्य सोलह शताव्दिमें !
लिखा । जिसके अंतर्गत “पसाद मज्नरी नामके भन््थ पर सुप्रवोधिनी नामकी
दीका उसी विख्यात कुरमें पैदा हुंए स्थपति श्री प्रंभाशकरने छिखी है ।
ध मदन आ्धिपति आबा श्री गणुपतितें, -ओऔ्री सरस्वती डेंची, खने रक्षा,
परेड जने भछेश ब्याहि इवे'न बने सिियने छेकल/पपा | अरनु(र ओला सुथ-
नारप्यणन नभ्च्यार उसने त०५, शिव्शासना हदुछ बस्नाश (अथे्८5 )
भरशेनि श्री विशवदभोंने भन जने प्णीथी नभन्थर परीने हु प्रशाशहर
जा अथनत] ननववाहने। आर भ अत ४.
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