प्रासादमज्जरी | Prasadamanjari

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Prasadamanjari by वासुदेवशरण अग्रवाल - Vasudeshran Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देव स्तुति तथा ग्रेयकर्ता का परिचय गणाधिपं. नमस्कृत्य देवी सरखती वथा नह्मा विष्णु महेशादि सूये दिसकरं सदा शा शिल्पशाब्षप्रकेर्तारं। धिश्वकंमोी सहामुनिस्‌ । सतसा बचसा नत्वा संधारम्भ करोम्यहम ॥शा गणोंके अधिपति श्री गणेश, देवी सरस्वती, शर्मा, विष्णु, महेश आविको ओर दिनको ग्रध्यक्तित करने वाले सूपेको नमस्कार करके शिल्पशाओ्रोको उत्छद्ट करने- बाह्ले ( प्रयोजक ) महासुनि श्री विश्वकर्माकों मनवचनसे वंदन करके में भरभाशेकर इस अंश्रके अनुधादका प्रएंभ करता हूं । रा वशेडस्मिन्‌ रामजी शिल्पी ख्यातोड्व बासतुकमंणि । तस्मिन्नेचान्ययेजातः.. प्रभाशइुरः.. पत्चमः ॥3॥ सुत्रधार इति ख्यातो नाथनामामिधानवान्‌ । वात्तुमझरी नासाइये ,्ंथः प्राणकृतबाद' शिव३ ॥छ॥ तस्मिन्रैदान्तरगते. प्रासादमझ्री.. संज्षके | सुप्रवोधिनों टीका असन्‍्येडस्मिन हि. .करोति सः ॥०॥ भारदाज गोत्र जिससे श्री रामजीभा जेसे वास्तुकर्म में प्रख्यात शिल्पी हो गये । ऊसी छुलमे श्रो ओघडमाइ के कनिए पुत्र प्रभाशक्कर पांचवी पीढीमे हुए। नाथज्ञी नामके विख्यात सूचधारने कल्याणकारी “ बास्तुमझरी अन्‍य सोलह शताव्दिमें ! लिखा । जिसके अंतर्गत “पसाद मज्नरी नामके भन्‍्थ पर सुप्रवोधिनी नामकी दीका उसी विख्यात कुरमें पैदा हुंए स्थपति श्री प्रंभाशकरने छिखी है । ध मदन आ्धिपति आबा श्री गणुपतितें, -ओऔ्री सरस्वती डेंची, खने रक्षा, परेड जने भछेश ब्याहि इवे'न बने सिियने छेकल/पपा | अरनु(र ओला सुथ- नारप्यणन नभ्च्यार उसने त०५, शिव्शासना हदुछ बस्नाश (अथे्८5 ) भरशेनि श्री विशवदभोंने भन जने प्णीथी नभन्‍थर परीने हु प्रशाशहर जा अथनत] ननववाहने। आर भ अत ४.




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