प्रीत और रीत | Preet Aur Reet

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Preet Aur Reet by सत्यप्रसाद पाण्डेय - Satyaprasad Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो प्ेरी उन्हीं दिनों नई-मई धादी हुई थी। येता के रूप में मुझे एक शिक्षित युवती पत्नी मिली थी--रूप, गुण घौर यौवन से भरपूर | म्याह से बुछ पूर्व वह बी० ए० पास कर पुरी थी। मेरे सगुर भागद्यार दार्मा एफ प्रतिप्यित भौर पनाद्य सागरिफ थे। दरियागंज में उनकी एक दो- मंजिती फोटो थो भौर परात-पढ़ोस में प्रच्छी प्रतिप्या थी। धर्मा जी स्यापार करते थे भौर मगर के डिलने ही ध्यापार-मण्ड्तों के पदापिरारी चे। पर फा रहन-नाहव उनतरा डुछ ध्रापुनिक था भौर बुए प्रापीन । भ्रादीन इन मायनों में कि रसोई में यह योरी दिएा फर भोजन फरोते से । गर्मियों में भी उनके निजी कमरे में शीततपराटी दिछी हुई पाई जाती थी धौर सदियों में रई के मोटे-मोटे यह भौर उत पर गवादी ढंग से राजे मुगलपाशसीन गावतड़िये। बेशभूषा भी उनकी ट्विल्‍्दुस्तानी थी, याती गिर पर काली टोपी प्ौर तत पर भघकन प्रौर पोती ) है, प्रमीक्भी पह बन्द गले का कोट घोर पट भी पहन लिया करते थे। भोजन पिल्लुछ धात्ाहारी था घोर पर से बाहर हुछ भी मुँह में डासना यजित था। राष्ट्रपत्ि-मयन में प्रायोजित मोज पर वह यधयि झभीकमी कॉफी भौर भाइसप्रीम भादि भी से लिया करते थे। धर्मा जो हिन्दी की प्रष्छी योग्यता रखते थे, पर प्रंग्रेज़ी योतने या जिएने में उन्हें प्रपने मुनीम की राहायता लेनी पड़ती थी। वालाप के दोटान, प्राय: यह भपनी इस कमी का उल्तेस कर दी दिया करते थे, पर इस उस्लेस में उनके मुरा पर कभी भी भेंप या हीन भावना नहीं दिसाई दी, घपिनु दियाई देता या प्रात्म- विश्वास भौर सन्तोष । यह वहां फरते थे कि प्रप्रेजी पढ़े बिना ही वह इतनी सफलता प्राप्त कर गये, यदि यो० (० पास होते तो वया रान्देहू था कि सरकार में वह वाणिग्य-मत्रो होते प्रयवा विदेशों में कटी राजदूत ।




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