आज कल परसों | Aaj Kal Parso
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पासी बोली--हा।
मैंने कहा--एक ही कप लाना । मैं नही लूगा ।
मैंने घड़ी की तरफ नजर दौड़ाई। सुशान्त के जाने के बाद करीब डेढ़ घण्टा
बीत गया। साढ़े आठ बजने को थे। झ्राघे घण्टे मे लौट ग्राऊपा, कहकर वह गया
था। सुशान्त किस ऋमट में मुर्के फंसा गया !
काफी आरा गई थी। पाखी गरम काफी की चुस्किया भर रही थी। मैं एक-
टक पाख्ी को देख रहा था--यह लड़की सुशान्त का इतना रपया सा गई है !
मुझे बड़ा बुरा लग रहा या । सुशान्त कोई घनी झ्ादमी तो है नही । किराये की
कुछ झ्रामदनी और थोड़ा-वहुत लिखकर कमा लेता होगा। उसके वल पर पाखी
जसी हथिनी को पालने का झौक उसे कंसे हुआ ।
यह लड़की तो सुशान्त को विल्कुल खा जाएगी।
बेयरे ने फिर झाकर पूछा--और कुछ लेंगे ?
मैंने पाखी से कहा--कुछ भौर लेंगी क्या ?
पता नही क्यों पाखी वेयरे से पूछने लगी--और वया-क्या है ?
बेयरा एक लम्बी लिस्ट सुताता चला गया। डेविल, एग-करी, मटत, दो-
प्याज़ा, फिश फाई भादि-प्रादि ।
मेरा दिल कांप रहा था। सोचा--पाखी भ्रौर खाएगी वया ? रुपये तो
सुशान््त को ही देने पड़ेंगे ।
पर झगर उसके पास इतने रुपये न रहे तो**-?
पासी बोली--देखिएगा ! सिनेमा में यदि मोका मिला तो मैं रातोंरात
नाम कमा लूंगी । सिनेमा मैं खूब देखती हूं ॥ पर अभिनय किसीका पसन्द ही नहीं
पाता । इच्छा होती है भ्रभिनय करके सव को दिखा दू !
मैंने कह्ा--इस सम्बन्ध में मेरा ज्ञान बहुत ही सीमित है ।
पासी झचरज के साथ बोलो--ऐसा क्यों ? सिनेमा के विषय में श्राप कुछ
नही जानते | तब तो श्राप किसी झ्रादमी का खून भी कर सकते हैं !
मैंने कहा --जिस चीज का मुझे ज्ञान ही नही, उसके बारे में मैं कँसे बोल
सकता हूं ! के
पाखी बोली--इस युग में सिनेमा से सम्बन्धित कुछ नहीं जानना अपराध
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