मधुरजनी | Madhurjani

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Madhurjani by रामगोपाल शर्मा - Ramgopal Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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41 इस पर्दे को दूर करो हे । सुधा पान कर सोई आशा, सफल हो उठे जीवन पाकर, सुख मे दुख परिणत हो जाए, विश्वेश्वर ! ग्रभिशाप बने वर 1 महा शूय में विहेंस पडो है ! इस परे को दूर करो है! वौसी घरूप ? कहाँ की छाया ? प्रन्त-हीन झ्रालोक उदय हो । गहन तिमिर को काली काया, महालोक में नाथ, निलय हो। शत-झत दिनकर से दमको है ! इस पढे को दूर करो हे। मघुरजनी २७




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