सूरति मिश्र का अज्ञात काव्य | Soorati Mishra Ka Agyat Kavya

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Soorati Mishra Ka Agyat Kavya by रामगोपाल शर्मा - Ramgopal Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुरति मिश्र का श्रज्ञात काव्य नेकु दरपन समता की चाह करी कहूँ, भए श्रपराधी ऐसे चित्त धारियत दहै। सूरति सु याही ते जगत बीच श्राजु हू लों उनके बदन पर छार डारियत है।। र ॥॥ इ--श्रमरचत्द्रिका यह सतसई के दोहों की टीका है । इसे इन महाशय ने सं० १७६४ में बनाई । यह महाराजा अमरसिंह जी जोधपुर के नाम से बनाई गई । इसके समान कोई भी टीका सतसई की भरत तक नहीं वनी । इसमें बहुत से प्रथं कहे गये श्रौर प्रलक्रार लक्षणा, व्यंजना इत्यादि भी खुब साफ करके दिखलाई गई हैं । इस पर प्रसन्न होकर महाराज ने उनकी बड़ी खातिर की ग्नौर कवि-कुलपति की पदवी दी । वास्तव में यह ग्रन्थ ऐसा ही प्रशंसनीय बना भी है । कविप्रिया का तिलक इसे भी इन महाशय ने वनाया, परन्तु इसमें संवत इत्यादि नहीं दिए ` गए हैं । यह भी तिलक उत्कृष्ट बना है । इसमे कुल छंदों का तिलक किया गया है । परन्तु जो-जो स्थल कठिन श्रौर विवादपूर्ण हैं, उन पर शंका रहित टीकां की गई है, जो सवेतोभावेन प्रशंसनीय है । इससे केशवदास का किलष्टकान्य पाठक सहज में भ्रच्छी तरह समभ सकते हैं । आगे मिश्रबंस्धुओों ने लिखा है कि-- इन ग्रन्थों के भ्रतिरिक्त इन्होंने बैतालपंचविणति का संस्कृत से गद्य ब्रजभाषा में श्रनुवाद किया । यह उल्था महाराज जैसिंह सवाई की श्राज्ञा से किया गया था । खोज रि० त्रै० में उनके ब्रनाए हुए काव्य-सिद्धान्त, रस-रत्नाकर-माला श्रीर रसिकप्रिया की टीक्रा रस-गाहुकचन्द्रिका नामक ग्रन्थ लिखे ह । उदाहरण-- “कमल नयन कमल से हे नेन जिनके कमलद वरन कमलद कहिए । मेघ को वरण है श्याम स्वरूप है, कमल नाभि श्री कृष्ण को नाम ही है, कमल जिनकी नासि ते उपज्यौ है । कमलाय कमला लक्ष्मी ताके पति है, तिनके चरण कमल समेत गुन को जाप क्यो मेरे मन में रहो ।” र ग्रन्थों की चर्चा करने के पश्चात मिश्रबन्धुओं ने निम्नांकित निष्कर्ष दया है :--




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