कथा कोष प्रकरण | Katha Kosh Prakaran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Katha Kosh Prakaran by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

Add Infomation AboutAchary Jinvijay Muni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रास्ताविक चक्तव्य 1१8 उसको छिसते समय, फिर साथसे यद मी वीढासा विचार दो आया, कि जप निनेश्वर सूरिके चरितके विपयमे इतना विस्तारसे लिखा गया है तो किर उनके रचे हुए उपछब्ध सभी अन्थोंका भी थोटा थोडा परिचय दे दिया जाय तो उससे निवामु वाचक व्गेकों, उनके झद्दात्मक ज्ञान- देहके खमपका भी छुछ परिचय दो जायगा | इस पिचारसे किए जिनेश्वरक्तरिकी प्न्थरचना इस ७ वें प्रकरणका लिसना आरस्म किया । इसके २-४ पर ही लिखे गये थे कि उतनेमे मुझे कार्ययश धम्बई आना पडा । और फिर अन्यान्य सपातनों आदिके कार्यमे, इसका लिखना पहीं अटक गया । पधर ग्रेसमें जो लिसान भेजा गया था बह भी प्रेसक्री शियिछतताफे कारण महिनो वक पेसे ही पढ़ा रहा और उसरा उपना प्रारन्म ही नहीं हुआ । वाइमें उद्यपुरमे होने चाले ग्थसिक्त भारतीय दिंदी सादिद्य सम्मेलन के खाग्रताध्यक्षके पदका कार्य कुछ सिर पर आ कर पड जानेसे तथा फिर उसी उदयपुर ही में महाराणा हाट प्रस्तुत री गई “प्रवापयिश्वविद्यालय की' ख्ापनाकी योजनामे ऊुठछ भाग लेनेकी परिखिति उत्पन्न हो जानेसे, एत्र फिर कछकता आदि खानेमि छुछ सभय रहतनेका निमित्त आ जानेसे, इस अकरणका छेसनऊार्य आगे वढ ही नहीं सझा और जो पिचार पूनाफे उस प्रशान्त स्थान और मनोरम वातावरण वीचमे रहते हुए, मनमे उपस्थित हो कर ऑसोऊ़े सामने सयठित हुए थे, वे सब विसरसे गये । कोई वर्ष डेढ' बर्ष बाद जा पर प्रेसने पूनासे भेजे हुए श्रकरणारा काम छापना झुर किया, ६-७ महीनोंमे जा कर कहीं ५-६ फार्म ठप कर तेयार हुए 1 तब फ़िर पिछके बर्षफे (स 548०४ के ) फाल्गुण मासमे एकाम्र हों कर अवशिष्ट अ्रकरणका ठिसान पूर्ण किया और ग्रेसमे दिया-- जिसकी छपाईकी' समाप्ति अब इस वर्ततान स ३२७०५ के फाल्गुण मासमें हो फर, यह प्रन्थ इस रूपमे धाचक- कॉके करकमढसे उपस्थित हो रहा है । 1 जैसा कि सैने ऊपर सूचित किया है, इस तिवन्धमे मेने कोई विशेष नूतन तथ्य नहीं आहेसित किये है, उसी पुराने छोदेसे छेसमे जो विचार मैंने सक्षेपमे अक्तित किये थे उन्हींढ्रा एक विश्वद भाष्यसा यद्द विवन्ध है । इस नियन्‍्धसे जो कुछ भी ऐविद्वासिक पर्यवेक्षण मेंने किया है बह झ्राय साधार है। इसकी प्रत्येक पक्तिके छिये पुरावन अन्योंद्धे प्रमाणभूव उद्धरण दिये जा सकते हैं । स्तावनाका कलेबर न बढ जाय और सामान्य पाठकों अ्स्तुत विवेचन कुछ जटिल्सा न छग्ने इस कारण मेने उन उद्धरणोंका अवतारण करना यहा उपयुक्त नहीं समझा । जो छुछ विचार मैंने यह्दापर प्रदाश्त किये हे वे सूजात्मत रूपमे-सप्षेपमे दे । इस इतिहासको विशेष रूपसे छिसनेके छिये तो ओर कोई असद्न अपेक्षित है। जन इतिहासका यह काछ बहुत ही अर्थतूचक, स्फूर्तिदायक और भद्दत्त्वव्शक है इसमे कोई सन्देद नहीं । कं ४, सिघी जैनग्रन्थमालाकें कथासाहित्यात्मक विविध मणि जैन कथासादियकी जिस विज्ञा> संसद्धिका सक्षिप्त निर्देश, सैंने आगेडे वियन्धमे (प्र ६४-५० पर ) जैन कथासाहित्यका कुंठ परिचय इस शीर्षक नीचे क्या है, उस समृद्धिपे परिचायक छठ विशिष्ट एप आचीन अन्योंसे प्रकाझमे लानेछी इछिसे जिन प्रकीणे कयसमुदरातम बहुमूल्य मणियोंका इस अन्यमाछामे गुम्फन करना मैंने अभी समझा है कर णि्‌ पडनेसे जम उन्हीमिसे न विशिष्ट मणि है. यह इसके पढनेसे पाठरोंफों खथ ही प्रतीद हो जायगा | को




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now