नीहार | Neehar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
583 KB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नौहार
सन्देह
बहती जिस नक्षत्नलोक में
» निद्रा के शवासों से बात,
रजतरश्सियों के तारों पर
बेघुध सी गाती थी रात्र 1
अलसाती थीं लहरें पी कर
मधुसिश्रित तारों की ओस,
भरती थीं सपने गिन गिन कर
मूक व्यथाएँ अपने कोप।
दूर उन्हीं नीलमकूलों पर
पीड़ा का ले भीना तार,
उच्छूवासों की गूँथी माला
मैंने प्रायी थी उपहार।
यह. विस्मृति है या सपना वह
या जीवन-विनिमय की मूल !
काले क्यों पड़ते जाते हैं
गाला के सोने से फूल!
१६२६ जनवरी
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