नीहार | Neehar

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Neehar by महादेवी वर्मा - Mahadevi Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नौहार सन्देह बहती जिस नक्षत्नलोक में » निद्रा के शवासों से बात, रजतरश्सियों के तारों पर बेघुध सी गाती थी रात्र 1 अलसाती थीं लहरें पी कर मधुसिश्रित तारों की ओस, भरती थीं सपने गिन गिन कर मूक व्यथाएँ अपने कोप। दूर उन्हीं नीलमकूलों पर पीड़ा का ले भीना तार, उच्छूवासों की गूँथी माला मैंने प्रायी थी उपहार। यह. विस्मृति है या सपना वह या जीवन-विनिमय की मूल ! काले क्यों पड़ते जाते हैं गाला के सोने से फूल! १६२६ जनवरी




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