अभिधान राजेंद्र | Abhidhanand Rajendra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
115 MB
कुल पष्ठ :
1041
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्-जिस शब्द का जो अयथे है उसको सप्तम्यन्त से दिया है और उसके नीचे [, ] यह चिह्व दिया है और लसके
द जिस ग्रन्थ से वह अर्थ जिया गया है उसका नाम ज्ञी दे दिया है।यादि लसके आगे उस ग्रन्थ का कुठ ज्ञी पाठ
नहीं हे तो छस ग्रन्थ के आगे अध्ययन लद्देशादि जो कुछ मिल्ला है वह भी दिया गया है ओर यदि उस ग्रन्थ का पाठ
मिल्ला हैं तो पाठ की समाप्ति में अध्ययन लदेश आदि रक्खे गये हैं, किन्तु अर्थ के पास केवल् ग्रन्थ का ही नाम रक्खा है ॥
ए-मागधीशब्द और संस्कृत ्रनुवाद शब्द के मध्य में तथा लिढ़ ओर अलुबाद के मध्यमें भी (--) यह चिह्र दिया है। इसी
तरह तदेव दशयति- तथा चाइ- या अवतराणिफा के अन्त में भी आगे से संवन्ध दिखाने के ल्लषिय यही चिह्न दिया गया है ।
६-जहाँ कहीं मागधी शब्द के अनुवाद संस्कृत में दो तीन चार हुए हैं तो दूसरे तीसरे अलुवाद को भी मादे ही
ऋअफ्षरों में राखा हे किन्तु मेस पाकृत शब्द सामान्य पर््गक्त (लाघ्न ) से कुछ बाहर रहता दै वैसा न रखकर सामान्य
पशक्ति के वरावर ही रक्खा हे आर उसके आगे नी झ्लिह्ृमदशन कराया दे; वाकी सभी वात पृववत् मूलशब्द की तरह दी हे ।
उ-किसी किसी मागधीशव्द का अनुवाद संस्कृत में नहीं हे किन्तु उसके आगे “देशी ' लिखा है वहाँ पर देशीय शब्द
समभना चाहिये, लसकी व्यृत्पत्ति न होने से अतुवाद नहीं है ।
८-किसी ४ शब्द के वाद जो अनुवाद हे ठसके वाद लिह् नहीं हे किन्तु ( धा० ) लिखा है उससे घात्वादेश
समभना चाहिये |
ए- कहीं कहीं ( वण ब० ) ( क० स॒० )( बहुए स० ) ( त० स० ) (नए त०) ( ३ त० )( ४ त० 2) (0१०)
(६ त०) (७ त०) (अव्ययी० स०) आदि दिया हुआ है उनको क्रम से बहुवचन; कर्मधारय समास; वहुब्रीहि; तत्पुरुष;
नमतत्पुरुष; वृर्तायातत्पुरुष; चतुर्थी तत्पुरुष; पश्चमी तत्पुरुष; पष्टीतत्पुरुष; सप्तमीतत्पुरुष; अव्ययीमाव समास समऊना चाहिये |
१०- पुं० | स्ली० | न० 1 त्रि० | अव्य ०-का संकेत क्रम से उल्विज; ख्रीलिज्। नईंसकक्षिक्ष; तिलिज्न और अव्यय समझना ।
अध्ययनादि के सह्लेत ओर वे किन किन ग्रन्थों में हँं--.-
११--१ अ०- अध्ययन- आवश्यकचूर्णि, आवश्यकहात्ति, आचाराड़, उपासकदशाक्न, लत्तराष्ययन, क्लाताधमंकथा,
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दशाश्रुतस्कन्ध, दशवेकालिक, विपाकसूच्र ओर सूत्रकृताक में हैं ।
२ अधिए- अधिकार- अनेकान्तजयपताकाह त्तिविवरण, गच्णाचारपयन्ना, धर्मसंग्रह भोर जीवानुशासन में हैँ ।
३ अध्या०- अध्याय- छल्यानुयोगतर्कंणा में हेँ।
पर अष्टू०- अप्ठक- हारिभमछाए्क आर यशाविजयाष्टक में हैं |
४५ ल०- हद्देश- सूत्रकृताड़, जगवती, निशीयचूरिंग, वृहत्कस्प, व्यवहार, स्थानाक् ओर आचाराक्न में हैं।
६ उद्ला०- लल्लास- सनप्रश्न में हूं।
७ कमे०- कमग्रन्थ- कपग्रन्थ में हें |
८ कल्प- कल्प- विविधतीथेकल्प में हैं।
- ए ठा०- ठाणा- स्थानाइसन्न में हैं ।
१० खएम- खएम- लत्तराध्ययननियुक्ति में हैं ।
११ क्ृण- कृण- कल्पसुवोधिका में हैं ।
१४ काएम- काएम- सम्मतितक में हैं ।
१३ छाए- द्वा्निशिका- द्वार्निशदद्वा्निशिका में हैं ।
१६ द्वार- द्वार- पञ्चवस्तुक, पञ्चसंग्रह, प्रवचचनसारोद्धार और प्श्नव्याकरण में हैं ।
( प्रश्नव्याकरण में आश्रवद्वार और संवरद्वार के नाम से ही द्वार प्रस्िष्य हैं ) तर
१७ पद- पद- प्रक्नापनासूत्र में हें।
2६ परि०- परिच्छेद- रत्नाकरावता रिका में हैं ।
१६ चू०- चूलिका- द्शवेकालिक ओर आचाराह़ में हैं।
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