योग के आधार | Bases Of Yoga

Bases Of Yoga by श्री अरविन्द - Shri Arvind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्थिरता नहीं होता केवठ वस्तुओं का एक ऐसा सारमूत डा द्रयान भवमान होता है जिसका कुठ रूप नहीं वधता किन्तु स्थिर मनमें मनोमय सत्ताका सत्त्त ही झान्त हो जाता है इस प्रकार झान्त हो जाता है कि उसकी शान्ति किसी भी चीजसे भग नहीं होती । यदि विचार या सकत्य आति हैं तो थे स्वय मनमेंसे बिछ्कुल नहीं उठते बल्कि बाहरसे आते हैं और जैसे उड़ते हुए पक्षियोंका एक समूह निर्वात आकाशामेंसे होकर गुजर जाता है वैसे ही ये मी आते और चले जाते हैं । थे किसी चीजको श्लुव्ध किये पिना तथा अपना कोई चिन्हतक छेडि गिना गुजर जाते हैं। यहातक की यदि इजारों आऊतिया अथवा अत्यन्त मीपण घटनाएं भी उसके सामनेसे गुजरें तो मी उसकी स्थिरता और अचचलठता बनी रहती है मानो उस मनफी रचना एक शाश्वत और अविनाशी शान्तिके तत्त्वसे ही हुई हो । जिस मनने इस स्थिरताको प्राप्त कर छ्या दे चह काम करना आरभ कर सकता है यहा- तक कि वह तीव्र रूपसे तथा शक्तिशाठितासे मी काम कर सकता है पर उसकी अपनी मूठगत शान्ति [५1




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