परमार्थ पत्रावली भाग - 1 | Paramarth Patravali Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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No Information available about श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परमार्थ-पत्रावली
शक्तियों भूछ रद्दा है इसीलिये उसको माया प्रयकत प्रतीत
होती दे । यदि अपनी दक्ति जागत कर छी जाय तो मायाकी
दाक्ति सहजदीीमें परास्त हो ज्ञाय मायामे अप्तान देतु दे और
शप्तानऊे नाशसे ही मायाका नाश है।
प्र०-ज्ञिस समय चद्द ( परमात्मा ) किसी रूपभे अपना
सप दिखलाता दे उस समय तो छुछ आनन्द सा दोता हे पर
उस आनन्द्म उस आननन््दरूपफो न पदचानफर जीव उसे
छोड़ देता द, फिर पश्चात्ताप होता हे । सात्म नहीं, चद्द पश्चात्ताप
असली हूँ या प्रवायटी | असछी होता तो क्यों नहीं पकड़ झेता ?
उ०-ठीऊ दीं दे। पश्यात्ताप असली द्वोता तो छोड़ता
रीक्यों?
प्र०-एसी स्थितिम जीवका मोट नाश केसे दो ?
उ०-संसारासकि ही इस मोहका कारण दे। उसका नाग
चेराग्यसे दो सकता दे चराग्यमें पूर्वससश्तित पाप याधा देते हू
परन्तु परमामाकी शरणसे उनझा भी नाश हो सकता दे ।
आगे) लेयमजानन्त शुतान्येम्प उपायत ।
वेश्षय आशिएल्येय ससु शुततपरयणा ॥
बाय इनमे दूर अर्थात् को साद बुद्धिगले पुरुष ६ थे ( सगे )
दस प्रार मे शानों हुए, दूसरोंसे सर्मातू राष्यके दो पुरुषोंसे
फ्ः ही नमक: हर के 4 २ री
सुनार ही उफर्णा ऊस्ते & रेस मे मुयरेशे पशान्ण हुए पुदष मे
मूसपुरूप समारण गरडा नि सादेह तर डे ए ।?
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