श्री ब्राह्मण गीता | Shree Brahman Geeta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४” तृतोय अध्याय ] ण॒गोता ४. अलायज जा] $ » 53०७+७' ०. 35 ७०७०९०५७००५०६ बन + है +७+०८५४०+४०2 ५०5 ७. ब>ल अली ेनचअ+ 53% ८2५०६ ५७ २०५३६०५०५०५००५०००७: उपपत्ति तु वक््यासि ग्सस्पाहमत; परम। तथा तनन्‍्से निग्दत!ः श्वणष्चावहितो क्षिजथ ॥४२५॥ हैं आाह्मयण | अच हम इसके अननन्‍्तर जीवात्मा किस अकार स गर्भ में जाता है इसका वर्णन करेंगे तुम ध्यान पूर्वक श्रवण [करों ॥ ४२ ॥| श्री आर गोता का दूसरा अध्याय समाप्त अन-«»---3०. ढक» २५०++०००+ #नममकमरमजक, तीसरा अध्याय ज्ाल्मण उवाच--- ” शुभान,मशुसानां च नेह नाशो5स्ति कमशाम्‌। ग्राप्स प्राप्पालुपच्यन्ते चछ्ेचर चेत्र तथां तथा ॥१॥ सिद्ध ब्राक्षण ने कहा | हे काश्यप | इस संसार में अच्छे और बुरे कर्मों का नाश कभी नहीं होता और जीवात्मा जन्म जन्मानदरों को प्राप्त होकर कर्भो का फल मोगते हूँ ॥१॥ यथा प्रसुयमानस्तु फली दद्यात्फल बहु । ' तथा स्थाहिपुलें पुण्य शुद्धाधन भमनसा कछुतस्‌ ॥३२॥ जिस ग्रकार फेल, वाल! वृक्ष ऋतु काल में बहुत स फल दृता है उसी अकार से बहुत से पुण्य झुद्ध मन से-जीवात्मा करता है ।२




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