श्री ब्राह्मण गीता | Shree Brahman Geeta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४” तृतोय अध्याय ] ण॒गोता ४. अलायज
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उपपत्ति तु वक््यासि ग्सस्पाहमत; परम।
तथा तनन््से निग्दत!ः श्वणष्चावहितो क्षिजथ ॥४२५॥
हैं आाह्मयण | अच हम इसके अननन््तर जीवात्मा किस अकार स
गर्भ में जाता है इसका वर्णन करेंगे तुम ध्यान पूर्वक श्रवण
[करों ॥ ४२ ॥|
श्री आर गोता का दूसरा अध्याय समाप्त
अन-«»---3०. ढक» २५०++०००+ #नममकमरमजक,
तीसरा अध्याय
ज्ाल्मण उवाच---
” शुभान,मशुसानां च नेह नाशो5स्ति कमशाम्।
ग्राप्स प्राप्पालुपच्यन्ते चछ्ेचर चेत्र तथां तथा ॥१॥
सिद्ध ब्राक्षण ने कहा | हे काश्यप | इस संसार में अच्छे
और बुरे कर्मों का नाश कभी नहीं होता और जीवात्मा जन्म
जन्मानदरों को प्राप्त होकर कर्भो का फल मोगते हूँ ॥१॥
यथा प्रसुयमानस्तु फली दद्यात्फल बहु ।
' तथा स्थाहिपुलें पुण्य शुद्धाधन भमनसा कछुतस् ॥३२॥
जिस ग्रकार फेल, वाल! वृक्ष ऋतु काल में बहुत स फल दृता
है उसी अकार से बहुत से पुण्य झुद्ध मन से-जीवात्मा करता है ।२
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