यजुर्वेद भाष्यम | Yajurved Bhashyam

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Yajurved Bhashyam by श्री परमहंस स्वामी - Shri Paramhans Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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33 + मम ७ मे > मार 3. ९>1७ नशा कुछ मात ०3-७3 ३०२५७७०३०७५००३०५०५७१३:॥०५९५:३७३७५३७६३»७५ ७ ४५७७४७५७५६५३७५३४४४०७४३७७७७७०७७॥७७५५७४७०७७४४३७३७५४४॥७ ०७ १२६४ ५३७७५३५३५५५५५०५वक९ ७७०३ ५०७++3४-० एणाणणएणणत यजुवदभाष्ये 1 . &८३ योगेंबोगइति योगेष्योगे । तवस्तेरामिति तब'$- त॑रम। वजिवाजइतिवाजेंडवाजे । हवामहे । स- खांयः | इन्द्रम। ऊतयें ॥ १४४ पदार्थे:-( योगेयोगे ) युजते यस्मिन्‌ यस्मिन्‌ ( तवस्तरम्‌ ) | घ्य्त्यन्त बलपुक्तम्‌ । तवड्ति बलना० निघं० २॥ ९॥ ततस्तरप्‌ | (बाजेबाजे) सद्यामे सड्झामे (हवामहे) आहवर्यामहे (सखायः) 1 पररुपर सुद्ददः सन्‍्तः (इन्द्रम) परमैश्वय्युक्त राजानम्‌ ( ऊतये ) | रक्षणाद्याय ॥ १४ ॥ प्रन्वय!--हे सखायों यथावयमृतये योगेयोगे वाजेवाजे . तब- | स्तरमिन्द्र हवामहे तथा ययमप्येत्तमाहयत ॥ १४ ॥ भावाथें।-समे परएपरं मिन्रा भत्वा(न्योन्यरुय रक्षार्थ बलिष्ठ धा- मभिक राजान स्वीकवान्त ते निविधनाः सन्‍त$ सखमेघन्‍्ते ॥१९४॥ ३ पदा शः--ह (सखायः) परस्पर मित्रता रखने हारे लोगो जेसे हमलोग ( ऊत-. _ | ये) रक्षा आदि के लिये ( योगेयोगे ) जिस २ में (वाजवाजे) हा सड्झाम २ के बच 1 (तवस्तरम) अत्यन्त बलवानू ( इन्द्रम्‌) परमेश्वय युक्त पुरुष को राजा (हवामहे) मानते 1 हैं वैसे ही तुमलोग भी मानो ॥ १४ ॥ -“सावा्ेः--ने मह॒ष्य परस्पर मित्र हो के एक दूसरे की.रक्षा के लिये अत्य जत बलवान, धमीत्मा पुरुष को राजा मानते हैं वे सब विज्नों सेअलग हो के सुख उन्नति कर सकते हैं ॥ १४ ॥ « प्रतवैन्ित्यस्थ शानः्शेप ऋषि: । गणएपतिदेवता। आपषी:. जे - | गती छन्द३ ॥ निषाद३ स्वर; ॥




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