नीति शास्त्र | Neeti Shastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नीति-धास्त्र की परिभाषा, क्षेत्र तथा विधि भू दुर्पत्ततता श्र सकत्प-शरफ्ति के झमाव के कारण उसे कार्य-रूप में परिणत न फर पावें | नैतिक-जीवन की कला की शिक्षा के लिए “उपदेश की भ्रपेसा उदाइरण वरणीय है”, भौर व्यचितगत नैतिक ग्रनुमव तो दोनों ने श्रेप्ठ है , फलत यदि नीति- घास्त्र का कार्य, व्यावहारिक विज्ञान होने के नाते, उपदेदा देना भी होता, तथापि ये नेतिक जीवन की कला की शिक्षा के लिए श्रपर्याप्त होते । इस प्रकार, नीति-शास्प न तो व्यावहारिक विज्ञान है, न कला । यह एक नियामक-विज्ञान मात्र है । क्या व्यवहार की कला सम्भव है ? व्यवहार की कला कहना बिल्कुल अनुपयुकत है । 'कला' का प्रयोग भिन्न मिस भ्र्थों में किया जाता है । धघिल्प-कलायें विल्कुल उसी प्रकृति की नहीं हैं जसी ललित-कलायें । थिल्प कताग्रों का उद्दध्य उन वस्तुप्नो का उत्पादन है जो किसी टूरस्थ प्रयोजन के लिए उपयुक्त है, जवकति ललित- फनामो का उद्देदय उनकी सृष्टि है जो स्वत वाच्छनीय है । एक उपयोगी वम्तुप्री का उत्पादन करती हैं , दूसरी स्वत मूत्यवान्‌ वस्तुप्रों का । किन्तु, दोनों भवस्थाश् में एक निदिचित फल होता है जिसका उत्पादन कला का लध्य होता है । नैतिकता के विपय में यह सत्य नहीं । वहाँ नो फोई फल है हो नहीं , जो कुछ है कर्म दै। यह सच है कि कर्म का अन्तिम लक्ष्प घ्र्यात्‌ परम हित की लुनना में मूच्य होता है । फता भौर नीति-णामस्त्र में निम्नलिखित श्रतर है “घर्म (एएएपट) की सना के दल कर्म करने में है--एक प्रच्छा चिश्नवपर बह र जो प्रच्ठा चित्र बना सकता है । एक भ्रच्ठा मनुप्य वह है जो ध्रच्छा कमें करता ट पह नहीं जो सत्क्म फर सकता है । सच्चरिघ्ता सामथ्य व घधफ्ति नहीं घस्कि ण्या है 1 एक सत्यवादी व्यक्त वह नहीं जो सत्य कह सकता है, चह्कि वह है जो नत्य कहने का श्रम्पस्त है । घार्मिक चह है जिसने नियमित सूप से कार्नस्य फरनें की घ्ादत डाय दी हो । भरत घर प्रिया का गुणा है । घम का तत्व सफत्प में निहित है 1” कला फौयल या प्रयोणता मी उपलब्धि का नाम हू । नेनिपता संकल्प फी वृत्ति-विशोष में होती है । बाप घयवा टप्प कार्य मी घनुपर्थिति में भी प्रेरणा, घमिषाय, प्रयोजन या लुनाव इनमें से बोई भी सण्त्प पी यृत्ति तो चर्तमान होती हो है । याद पिया के झमाव में की ान्नर्िक मानसिक पिया में नेनियता पाई जा सकती है । दिसी पर्म या मैतिक गुशा-दोप घास्तरिक म्ररणा प्रसवा भ््िमाय में स्पत होता है, से कि उसके दाए प्रकाशनों में । एस गायन सहायता के लिए पापफे पास भाना है । प्रापके पाए सनी सहाय गये मो उपाय नी है । पाप उसके दु गा से सियास्शापं छुए सरने में घममर्ष ? । सपापि स्यपरा हुइय उसकी सदानुनृति में यिदीस हो रहा है भौर घाइसी पया है दि सना नी थे व पर पा न भ् ध् ननररन्ा रमेरडी . 'नोतिनास्त्री पप्ठ दन्दू 1




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