कलख | Kalakh

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Kalakh by श्री हरिकृष्ण प्रेमी - Shree Harikrishn Premee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २१ ) रखने के लिए उम्के भागे के काटे चुनने का काये इस काल के अन्य कवि देवीअसाद पूएों, भीघर पाठक, सल्यमारायण कवि रत्न, अयोध्यासिंद उपाध्याय, मद्दावीरप्रसाद द्िविदी आदि ने किया है। थ्री मैथिलीशरण गुप्त, थी जयशकर प्रसाद, भरी भाखनलाल चतुर्वेदी और सुमिनानद पत ने---जो हस युग के प्रतिनिधि कवि हें-- हिंदी कविता के जरा जजैरित प्राणों में नवजीवन सचार किया है--उसे यौवन प्रदान किया है । भाषा को राष्ट्र भापा का रूप अदान किया है। इतना ही नही राष्ट्र वा विश्व के साथ और शआत्मा का परमात्मा के साथ प्रयि वधन इस युग के कवियों ने रिया है । खड़ी वोली के विपय में अपती ओर से एक शब्द भी न कह कर पतजी के निम्न लिखित बाक्य उद्धृत कर देना मैं उचित सममता हू । ४ खड़ी बोली में चाद्दे अजमापा की श्रेष्ठम इमारतों की द्वोढ़ जोड़ की अभी कोई इमारत भले द्वी न दो, उसके मदिरों में पैसो बेल बूटेदार सौनाकारी तथा पश्चीकारी, उसकी युद्दाओं में अजन्ता कासा अदुभुत अध्यसाय, चमत्कार, विविध बर्णों की भैनी तथा अपूर्व इसकोशल, उसकी छोटी मोटी, इस पत्थर के काल की मूर्तियों में बद सूच्मता सज घज, निपुणता, अथवा परिपूणेता व मिले, उसमें भी माउस के से पवित्र घाटों का अभाव हो, पर डसंके गज पययों में जो विस्तार और व्यापकता, भिन्न मिन्त स्थानें को आने जाने वाले यात्रियों के लिए जो रय तथा यानों के सुप्रवध की ओर चेश, उसकी हाट वाट विषाणियों में जो वस्तु वैचित्य का आयोजन है, देश प्रदेशों के उपभोग्य पदार्थों के विनिमय तथा ऋय-




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