धरती का सूरज | Dharati Ka Suraj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[131
ते हैं । लोगों की जय-जयकार, कुर्सी की मादकता और चुरा-भला कर गुजरने की क्षमता,
ग़्ाओं के अहं में वृद्धि करती है । इन सारी स्थितियों से वो आपको भी गुजरना होगा,
ब्न्जी !!! -
० आपका कथन सामान्यतया सत्य है । और यही कारण है कि सत्ताधारियों की
पक और वेश्याओं की पायलों की घमक में कोई विशेष अन्तर नहीँ होता है । सत्ताधीश
|य॑ को प्रजा से विशिष्ट समझ लेता है और वेश्या प्रत्येक पुरुष को बिकाऊ मान बैठती
“यही दोनों में साम्यता के आधार हैं किन्तु इत दोनों के अपवाद भी धरतो पर होते हैं ।
ग्री धरती पर महाग़ज रघु, रामचन्द्रजी, बापारावल, महाराणा कुंभा एवं महाराणा सांगा जैसे
गों ने भो जन्म लिया है और शकुनी एवं जयचंद जैसे भी यहाँ आकर चले गए हैं । मैत्रेयो,
क्यों और अनुसूया भी यहाँ हुई हैं ।'” प्रताप का चेहरा मिट्टी के दिए की रोशनी में भी
7-दप कर रहा था । न्
“बेटा ! सिद्धान्तों की चर्चा की अपेक्षा आप लोग इस पर विचार करो कि दुर्ग से
1ए संदेश का क्या उत्तर गिजवाया जाएं 2” महारानी ने मूल विषय पर चर्चा को मोड़ने की
रज से कहा ।
ह “कैसा संदेश महारानी जी ?'” चारण कवि की विचार सरणी को मानों विराम
गया था। हे
+' इसे शुभ अवसर ही समझा जाएगा कि आज प्रताप के जीवन के प्रथम मोड़ पर
पाप जैसा हिंतैपी व्यक्ति यहाँ उपस्थित है ।”
॥ राजणनी को अपने पीहर से आए चारण कवि से मिल कर वास्तव में प्रसन्नता हुईं
1
* “जाईजी | मैं आपका आशय नहीं समझ पाया । युवराज के जीवन के किस मोड़
पी ओर आप संकेत कर रही हैं 2 !
। +'कविराज ! महाराणा जी ने संदेश भिजवाया है कि वे युवराज की क्षमताओं को
रखना चाहते हैं ।'” 7
“किस क्षेत्र की क्षमताओं को ?” ४ |
“क्षत्रियों के लिए तो केवल एक ही क्षेत्र होता है । उनका जन्म ही मानो सुद्ध
के के लिए होता है । हम क्षत्राणियाँ तो बच्चों फो जन्म ही इसी निमित्त देती हैं,।
] “यह तो सौभाग्य है माताजी । आपने मुझे महाघारत को कथाएँ सुनाई थीं। अर्जुन
और श्री कृष्ण के संवादों का अर्थ भी समझाया था फिर यह जीवन का पहला मोड़ कैसा ?
जझे लगता है मेरे जीवत का आरम्भ ही अब होने जा रहा है 1” है
। “आप दोनों किस युद्ध की चर्चा कर रहे हैं ?'” *
५ “'कविवर | आपके प्रश्न का उत्तर मैं देना चाहूँगा । आपको पता है कि हमोरे
्प दादाजी महाराणा साँगा अपने जीवन के अंपिम युद्ध में हार गए थे । इसके बाद हमारे घर
।
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