योग सार | Yog Saar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
43
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२२ विभूति पाद:
अपने शरीर के रूप में संयम करने से रूप की ग्राह्म शक्ति
रुक जाती है इससे दूसरे के आंखों के प्रकाश से योगी के शरीर का
संनिकष न होने के कारण ( योगी के शरीर का ) अन्तधोन ( छिप
जाना ) होजाता है ।
सोपक्रमं निरुपक्रमं च कम तत्संयमादपरान्त ज्ञानमरिछ्रेभ्यों
वा।॥ २२ ॥
कम सोपक्रम (तीत्र वेग वाला, अथवा आरम्भ सहित) और
निरुपक्रम (मन्द वेग वाला अथवा आरम्भ रहित! दो प्रकार का
होता है उसमें संयम करने से मृत्यु का ज्ञान होता है अथवा अरिशें
(उल्टे चिन्हों) से मृत्यु का ज्ञान होता है ।
मेज्यादिषु बलानि || २३ ॥
मैत्री आदि (१३३) में सयम करने से मेत्री आदि बल प्राप्त
होते हैं ।
बलेपु हस्तिबलादीनि ॥ २७ ॥
हस्तीं आदि के बलीं में सयम करने से हस्ती आदि के बल
प्राप्त होते हैं ।
प्रहत््यालकित्यासात्सृक्ष्म व्यवहितविप्रकृष्ठ ज्ञनम ॥ २५ ॥
प्रवृत्ति (मन की ज्यातिष्मती प्रवृत्ति 1! ३६) के प्रकाश डालने
से सक्ष्म (इनिद्रियातीत) व्यवहित (आड़ में रहने बाली) और विशभ्र-
क्ृष्ठ [दूर की | वस्तु का ज्ञान होता
भ्ुवनज्ञान सयें संयमात् ॥ २६ ॥
सर्य में सयम से भुवन [ सातो लोकों में जो भुवन हैं | का
ज्ञान है।ता है ।
चन्द्रे ताराव्यूइज्ञानम् ॥ २७॥
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