श्रीमदाल्मीकि रामायण | Shreemadaalmiki Ramayan

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Shreemadaalmiki Ramayan  by चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwarkaprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीमद्राल्मीकिरमायणम आअयोध्याकाण्डः >++ पनन+ श्रच्छिता मातुलकुल भरतेन महात्मनाऋ । शुत्रृध्नो नित्यशत्रध्नोः नीतः प्रीतिपुरस्कृतः ॥१॥ महात्मा भरत जी ननिहाल जाते ससय जितेन्द्रिय शन्नन्न जी को बड़े प्रेम से अपने साथ ले गए ॥१॥ से तत्र न्यवसदश्रात्रा सह सत्कारसल्ृतः । मातुलेनाश्वपतिना पुत्रस्नेहेन लालितः ॥२॥ भरत जी अपनी ननिहाल में शत्रन्न सहित बड़ी खातिरदारी के साथ रहते ये। उनके मामा अश्वपति, दोनों साइयो पर पुत्र के समान स्नेह रखते ओर सब प्रकार से उनका सन रखते थे ॥२॥ तत्रापि निवसनन्‍्ता तो तप्यसाणों च कामतः । श्रातरों स्मरतां बीरो शृद्धं दशरथ तृप्म्‌ ॥र॥ # पाठान्तरे---तटाइनघ:ः” | ३ नित्यशत्रप्न--नित्यशत्रवों जानेल्रियाणि, तान्‌ इन्तीते शन्रम्न'। इन्द्रियनिभ्नवान । ( गो० )




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