प्राचीन भारतीय कला और साहित्य में कुबेरा | Prachin Bhartiya kala Aur sahitya me kuberaa

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्राचीन भारतीय कला और साहित्य में कुबेरा - Prachin Bhartiya kala Aur sahitya me kuberaa

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about इंदु भूषण द्विवेदी - Indu Bhushan Dwivedi

Add Infomation AboutIndu Bhushan Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वैदिकेतर परम्परा के परिचायक प्रतीत होते हैं 1 यही विशेषण कालान्तर में यक्षों की भीमकाय प्रतिमा के लक्षण के मूल में स्वीकार कर लिये गये। यक्षों की परम्परा भले ही प्राकूवैदिक रही हो परन्तु ऋग्वेद के समय तक इन्हें अर्द्ध देवता के रूप में अवश्य स्वीकार कर लिया गया था। अथर्ववेद में यक्षों के लिए ब्रहम शब्द का प्रयोग प्राप्त होता है। इससे स्पष्ट है कि यक्ष उपासना को आयों की मुख्य धारा में समाहित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी थी। अमृत से गिरी हुयी अपराजिता ब्रहमपुरी में निवास करने वाले आत्मनवद्यक्ष का भी उल्लेख अधथर्ववेद में हुआ है। इसी ब्रह्मपुरी में हिरण्यकोश था। अथर्ववेद का यह उल्लेख अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। वीर पहलवान तथा ब्रह्म के रूप में यक्षों की उपासना-परम्परा के जो अवशेष अद्यावधि उपलब्ध हैं तथा यक्ष और यक्षिणियों की उपासना से धन प्राप्त करने की जो परम्परा अधुनापि प्राप्त होती है उसके मूल में अधर्ववेद के वर्णनों को स्वीकार किया जा सकता है। अथर्ववेद के कतिपय उद्धरणों से यह ज्ञात होता है कि यक्षोपासना इतनी अधिक व्यापक थी कि उसे ब्रहम के साथ सम्बद्ध कर दिया गया। इस प्रकार ब्रह्मयक्ष सर्वव्यापी आत्मन्‌ का पर्याय बन गया। सुत्तनिपात में भी यक्ष की महत्ता का उल्लेख करते हुए उसे परमशुद्ध माना गया है। पूर्णज्ञान प्राप्त तथागत की तुलना यक्ष से की गयी है। अथर्ववेद ऋग्वैदिक आर्यों तथा आदिम परम्पराओं के पारस्परिक सामब्जस्य तथा संक्रमण का प्रतिनिधित्व करता है। इसीलिये इसमें एक ओर यक्षों से सम्बन्धित ऐसी विशेषताओं का उल्लेख मिलता हे जो यक्षों को बुरी आत्मा अथवा हानिकारक डात्रु के रूप में चित्रित करती है। | तत्रेव 4.3.13 तथा 5.70.4 2 अथर्ववेद 1.32.1-4 3 तत्रैव 10.2.29-33 4 तत्रैव 10.8.43 5 सुत्तनिपात 478 तथा 875 उद्धृत कुमार स्वामी द यक्ष आफ दि वेदाज एण्ड उपनिषदाज क्वार्टरली जर्नल आफ दि मिधिक सोसायटी जिल्द 28 भाग 4 पृष्ठ 235




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now