पातन्जल - योगसूत्र का विवेचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन | Patanjal - Yogasutra Ka Vivechanatmak Evm Tulanatmak Adhyayan

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Patanjal - Yogasutra Ka Vivechanatmak Evm Tulanatmak Adhyayan  by डॉ॰ नलिनी शुक्ला - Dr. Nalini Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हे ) प्रातीतिक सत्य (प्रतीति) से वास्तविक सत्य (सत्‌) के प्रथक्वरण में यह दर्जन विशेष उपयोगी है। भौतिक एवं मानसिक दशाएँ ये दो ही निश्चितरूप से सत्य माननीय है। जो दाशनिक भौतिक पदार्यमात्र को सत्‌ एवं मानसिक दशाओ को उनका आभासमात्र मानते है, वे भौतिकवादी (मैटीरिय लिस्ट या नंचरलिस्ट) कहलाते है। इसके विपरीत केवल मानसभावें को सत्‌ और भौतिक पदार्यों को उनकी प्रतीति भानने वाले प्रत्ययवादी या आइडिअलिस्ट है। भौतिक एवं मानसिक द्विविध पदार्थों की सत्ता स्वीकार करने वाले द्वतवादी (ड्युअलिस्ट) कहलाते है। प्रत्ययवाद का विरोधी सिद्धान्त वास्तववाद कहलाता है। इनमें वास्‍्तववाद ही विपय-प्रवान एव वेज्ञानिक माना जाता है। (२) एपिस्टोमोलोजी :-- यह प्रमाण-मीमांसा है। ज्ञान का स्वरूप, उसकी सीमाए एव प्रामा'णिकता, सत्या-सत्य का निर्णय इत्यादि इस दर्शन के आलोच्य विषय है। साथ हो इस दशेन में अनुभवगम्थ एवं अनुभवातीत पदार्थों का विवेचन भी प्राप्त होता है। अनुभति पर आश्रित पदार्थ एपोस्टिओरि (अनुभवजन्य) तथा अनुमव-स्वतन्त्र पदार्थ ए-प्राओरि (अनुभवाजन्य) कहलाते है। इस दर्शन मे इनकी विणद 'विवेचना की जाती है। (३) लॉजिक ( तकशास्त्र ) ;- ज्ञान की व्यावहारिक प्रक्रिया का विवेचन तकशास्त्र का विषय है। किसी तक की प्रामाणिकता एब सत्यता के परीक्षग-हेतु विशिष्ट नियमो का विस्तृत विधान लॉजिक का विषय है। इसके दो विभाग है--- (अ) डिडक्टिम ( निगमन ) सामान्य से विशेषानूसवान की पद्धति और (ब) इन्डक्टिम--विशेष दृष्टान्तो से सामान्य सिद्धातों का अन्वेषण । इनमे से प्रथम पद्धति मे केवल वध सत्य अनिवार्य है। द्वितीय में वस्तु की भौतिक सत्यता पर बल दिया गया है। तीनो की सामूहिक सज्ञा थियोरेटिकल फिलॉसफी अर्थात्‌ कल्पनात्मक दर्शन है। (४) एथिक्प (कत्तंव्यमीमांसा अथवा आचारशास्त्र) $-- इस दर्शन का प्रतिपाद्य विषय मुख्यतः आचरणो या कर्त्तव्यों की मीमांसा करना है। मानवजीवन का क्या लक्ष्य है? जीवन में वास्तविक कल्थाण की प्राप्ति का




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