युगवीर निबन्धावली | Yugveer Nibandhawali

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Yugveer Nibandhawali by आचार्य जुगल किशोर मुख़्तार - Acharya Jugal Kishore Muktar

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श् पापोंसे बचनेका शुरुष॑न्र इस संसारमें इष्टवियोग-अ्रनिष्ट्संयोग और रोगादि-जनित जितने भी दुःख और कष्ट है उन सबका सूल कारण पाप-कर्म है | क्या बालक, क्या वृद्ध और क्या जवान सभी दुःखोसे भयभीत और इस बातके उत्कट अमिलाषी है कि उन्हें किसी प्रकार भी दु.खके दर्शन न होवे, परन्तु दु.खोके मूल काररा 'पाप' को दूर करनेके लिये प्राय. कोई भी यथेष्ट प्रयत्न चही करता, उलटा दु ख मिटानेके लिये मनुष्य बहुधा पापकर्मका आचरण करते है जिससे दुःख दूर न हो- कर दुःखकी परम्परा उत्तरोत्तर बढती रहती है। झ्राजकलके मनुष्यों- की दशा ठीक इस इलोकमें वर्ित-जैसी जान पड़ती है -- * पुण्यस्य फल्लमिच्छुन्ति पुण्य नेच्छन्ति मानवाः | फल्न॑ नेच्छन्ति पापस्य फाप॑ कुबन्ति यत्नतः ॥ ग्र्थात्‌ृ-मानव पुरयका फल जो सुख उसको तो चाहते है,परल्तु पुर॒य तथा धर्मकार्यको करना नहीं चाहते--उसके लिये सौ बहाने बना देते हैं। और पापका फल जो दु.ख उसे तो नही चाहते--ढु.ख के नामसे भी डरते है, परंतु दुःखका कारण जो पापकर्म है उसे बड़े यत्नसे करते है--अनेक जन मिल-मिलाकर तथा सलाह-मशवरा करके उसे बड़े चावसे सम्पन्न करते है । ऐसी स्थितिमें केसे दु.खकी निवृत्ति और सुखकी प्राप्ति ही सकती है ? जिस प्रकार शीत दूर करनेके लिए शीतलोपचार उपयोगी नही होता उसी प्रकार दुखोको दूर करनेके लिए पापा-




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