सत्तागमे | Suttagame
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
122 MB
कुल पष्ठ :
1307
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२३
तद्धित
(१) अधेमागधीमें “तर” प्रत्ययका 'तराय” रूप होता है, जैसे-अणिद्वतराए,
सअप्पतराए, बहुतराएं, कंततराएं इत्यादि ।
(२) आउसी, आउसंतो, गोमी, बुसिम, भगव॑ंतो, पुरत्थिम, पश्वत्थिम,
ओयंसि, दोसिणो, पोरेवच्च आदि प्रयोगों 'मतुप” और अन्य तद्वित प्रत्ययोके
जैसे रूप जैन अधेमागधीमम देखे जाते हैं महाराष्ट्र वे मिन्न प्रकारके होते हैं ।
महाराष्ट्री और अधमागधीर्में इनके अतिरिक्त बहुतसे सूक्ष्म भेद हैं जिनका
उल्लेख केखका देहसूत्र बठनेके भयसे नहीं किया ।
आगमोद्धार
जैसाकि हम ऊपर आगमोंके इतिद्वात प्रकरणमें लिख चुके हैं स्थानकवासी
समाजमें उत्तरोत्तर वृद्धि होती चली गई, अतः झानमें श्रद्धे होनी ही थी । सबसे
पहले श्रीधर्मशी स्वामीने मूलसूत्रोपर 'ठब्बें' लिखे, जो कि साधारण अभ्यासीके
लिए अत्यंत उपयोगी हूं । क्या ही अच्छा होता यदि उन्हें प्रकाशित क्रिया
जाता । इसके बाद पूज्य अ्रीअमोलक ऋषिजी म० ने बत्तीसों सृश्नोंका अनुवाद
किया । जिसका प्रकाशन हआरों रुपया व्यय करके श्रीमान् राजा बहादुर शे&
दानवीर घुखदेवसह्वाय ज्वालाप्रभाद जौदरीने किया, इसके लिए वे अधिक्राधिक
धन्यवादके पात्र हैँ । छेकिन पाठोंकी अशुद्धि, कांगजकी खराबी और मिश्रित
हिन्दी होनेके कारण समाजकों इतना लाभ न मिल यका जितना मिलना चाहिए
था । इसके अनन्तर जैनाचाये पूज्य श्रीआत्मारामजी महाराज और पूज्य थ्री-
का में० ने भी कई सूत्रोंके अनुवाद किए और घासीलालमुनि भी कर
रहे हैं ।
इसके अतिरिक्त रागबहादुर धनपतसिंह (मकसूदाबादबाके ) और आगमोदय-
समिति आादिने भी आगमोंका प्रकादान किया है पर वे भी अशुद्धियोंसे खाली
नहीं । कई प्राध्यापकों ने भी इंग्लिश अनुवाद सहित कुछ सूत्र प्रकाशित किए,
परंतु अतिसंक्षिप और महद्दाराष्ट्री प्रधान होनेके कारण खवाध्यायी के लिए अधिक
उपयोगी नहीं ।
सूत्रागमप्रकाशकसमिति
वैदिक प्रेस अजमेरकी छपी हुई चारों मूल वेदोंकी पुस्तक एक किसानमे शुरु
महाराजकी सेबामें पेशा की और पूछा कि भापके आगम भी एश जिल्दमें मिल
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