साम - वेद | Saam-ved

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Saam-ved by श्रीराम शर्मा आचार्य - Shri Ram Sharma Acharya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका वेद विश्व का सर्वोच्च और अनाक्ति ज्ञान है। जिस शब्दात्मक वेद को हम सुनते और पढ़ते है, वह यद्यपि भौतिक और देश-काल की सीमा में आबद्ध है, पर उसका सुक्ष्म या अभौतिक रूप, जिसको परावाक्‌ कहा जाता है, अनादि और अनन्त है। वह उसी अव्यक्त परब्रह्म का गुण है जिससे इस पचभौतिक विश्व का आविर्भाव होता है। जिस प्रकार विश्व का प्रत्येक स्थल पदार्थ ब्रह्मा की तन्मात्राओ से प्रकट होता है, उसी प्रकार वहाँ का ज्ञान-भण्डार भी उसी अनन्त ज्ञान-स्रोत से आता है। इसी कारण वेदों को ईश्वरीय ज्ञान कहा गया है जिसकी वास्तविकता तत्त्वज्ञो की दृष्टि मे असंदिग्ध है । धामिक श्रद्धा रखने वाले भारतवासी ही नही वरन्‌ अन्य देशो के बुद्धिवादी विद्वान भी यह स्वीकार कर चुके हैं कि वेद ससार के सबसे प्राचीन धर्म ग्रन्थ है और उनमे सृष्टि-विद्या के जिन मुल तत्वों का वर्णन किया गया है, वे पूर्णतः विज्ञान और तके सम्मत हैं। यह सत्य है कि उनका बहुत बड़ा भाग उपासना और कर्मंकाण्ड से सम्बन्ध रखता है, तो भी स्थान-स्थान पर उनमे विश्व उत्पत्ति, स्थिति और अन्त होने, आत्मा और जीव, समाज-संगठन आदि के मूल सिद्धान्त स्पष्ट रूप में बडी मामिकता के साथ प्रतिपादित किये गये हैं और उनको लक्ष्य मे रखते हुये मानव-जीवन के उन कत्तंव्यों का निरूपण किया गया है जिनके बिना उसकी सफलता असम्भव है । इनकी सबसे बडी विशेषता यह है कि ये किसी जाति, सम्प्रदाय या देश के विचार से नही किये गये हैं, वरन मानव प्रकृति को ध्यान मे रखकर मनुष्य मात्र के कल्याणार्थ उनकी योजना निर्मित हुई है। इसी से 'वेदो5खिलो धर्म मुलम्‌ ' की सार्थ- कता सिद्ध होती है और इसी से कहा गया है कि वैदिक धर्म किसी एक जाति या देश के लिये नही है वरन्‌ सावेमौम है, मनुष्य मात्र अपनी परिस्थितियों के अनुसार उस पर चल सकते है और जीवन को सुखपृर्वक अतिवाहित करके अन्तिम लक्ष्य (बन्धन से मुक्ति को प्राप्त कर सकते है । इसी तथ्य को हृष्टिगोचर रखकर एक बिद्वान ने कहा है कि “बेद-




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