साहित्य देवता | Sahitya -devta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मा, सब रिर उसके पास ्ैनसा लाल रह जाता, शालेत छोड़ने फे लालच
के तिवा । भक्ति की 'माजी गरिन लॉन के सामने, मुक्ति की सहमानी' का
मूल्य ही ख्सिया |
* अुस्याभस क राणा है शोश ध्याम राधिका दागी
आए पदारप करत सजूरी मुक्ति भरत अर्ह पानी ।
फिनु ' छाग्रवादी ? के माम से यदनाम के मुँह से निश्वलनेवाली बाणी
पर छितने नाराज ! बेदान्त री रेतीली आवाज में सोड्वमस्मि! सुतझर इस
सम मी लेते हैं, पिर मी डुला देते हैं | डिन्तु यही वात यदि कोई भातिओों
पे भिंगोहर मणि की घरसती में कह दे [-पह अपराधी /
जो भास-यास॒ बहतेशले मन््द समीरण से श्वना-पैसी करता है, नो
तिवलियों पे लेलता, पिट्टियों पे मिलकर पहरुता, गड़ए भीरयमुना हे स्वर से
सर मिलाकर भपनी मीठी स्पृ्तियों थ दुद्राता, वो उद॒एड होगे पर हवा पर
दागे कसता, कियों की च्रटक का चुटकियों एजाकर समर्मन करता ई उसे
रोश्नेवाला रन !
काम क्य बोलना है उससे गड़ी कठिमाई से होता है फिर रह बोलने
का छाम अपने पास ईंसे एल सके !
सीझ भर रीर दांनों ही कं उत्तके पयलपन पर ढाझ्य डालने रू
अधिकार महीं। जब सह ये छिसी ददय से, ऋषिभों के अक्षरों में लिसी न
आई हों। उसके एक ही सर ह्ीता हैः--
# हन्द के एुहाए कर्बात तेरी शहूरत
शरे छिए प्पारे हिन्दुमाती हो पुंपो म। ?
भक्तों ही यही झान, दृदय की यही पे-प्ी, पराणों रा यही
श्दृ ++ मुक्ति मरत जईँ पानी
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