श्वेताश्वतरोपनिषत् | Shwetashvataropanishat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्वेताश्वतरोपनिषत्  - Shwetashvataropanishat

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. भीमसेन शर्मा - Pt. Bhimsen Sharma

Add Infomation About. Pt. Bhimsen Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(५3 ३+3५3५3.५+++ 3५333 +का७५3/>क७+ 43५33» म ७4८ फ ०७५ अमन न सनी नम ८ ३ नमन मभन--+ मार 3७++->न मर प्रथमोजघध्याय ॥ रह जथ बजे 2५७«७०००५००+< थ्राम्यते तच्च तन्नियमबहु प्रलयावधि ,सात्त- त्येन थ्राम्यत्ति न कदापि सच्ये तस्थ विराम. केनापि कत्ते' शक्बते । ध्यानयेगेन तत्त्वज्ञा एव तचूक्रगतिं स्वात्मन्यालीचयन्ति। ये च केषपि कदाचिच्चक्रगतिमालेचयन्ति ज्ञान- चक्षपा सम्बक् पश्यन्ति त एवं तस्मात प्राप्त- विरामा शाम्यन्ति दु खान्मुच्यन्ते च यद्यपि तेषां दृष्टी चक्रधान्ति समाप्यते तथाप्यन्य- साधारणलीकिक्रपुरुषापेक्षया तत्तथेबाविरत- तथा भ्राम्यति वस्मादनायनन्तक्ालीना च- क्रगतिरस्ति । यद्यपि चक्रपदमन्न पद्मे नास्ति तथापि नेम्यरादिलिद्वैस्तदु पादान॑ स्फुटमे- वास्ति ॥ ४ ॥ भाषाथे -को एक ईश्वरकाल तथा आत्मा णीवादि उन सस्पूर्ण सृष्टि के कारणों का अधिष्ठाता है । उपनिषद्‌ ग्रन्यो में उसका दो प्रकार से व्यार्घान क्रिया है। कहीं त। सत्तार के साथ ढयापक उत्पादक पालक्रादि सम्बन्ध को छोड के केवल स्वरूप सात्र से उसका वर्णन है और कही ' वह ई श्वर सब पदार्थों में उन्‍्दी २ के रूप से व्यप्त हो रहा है!” उस २ नाम रूप से सोपाधिक इश्वर का व्याख्यान है। जैसे पए्थिवो के भीतर विद्यमान आकाश वायु भ्रग्मि जलादि स्थण दृष्टि से भिन्न प्रतोत होने पर भी वस्तुन सूत तथा वस्र




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now